"प्रकृती पर्व सरहुल"
"प्रकृती पर्व सरहुल" सरहुल शब्द सुनते ही प्रकति प्रेमी पारंपरि वेश-भूषा में सजे मांदर की थाप पे नृत्य करते आनंद से विभोर लोग जेहन में घूमने लगते हैं । मैं हवा बाँधता हूँ, पानी बाँधता हूँ, धरती बाँधता हूँ आकाश बाँधता हूँ नौ जंगल दस दिशा बाँधता हूँ, लाख पशु-परेवा, सवा जड़ी बूटी बांधता हूँ | हवा-पानी कई साथ आकाश बाँधने की बात आते ही आदिवासियों की जड़, जंगल और जमीन की समस्या मुख्य बन जाती है | इस सन्दर्भ में सरहुल विशेष महत्त्व रखता है | सरहुल आदिवासियों का एक प्रमुख पर्व है जो झारखंड , उड़ीसा , बंगाल और मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह उनके भव्य उत्सवों में से एक है। यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया पर मनाया जाता है। आदिवासी लोग 'सरहुल' का जश्न मनाते हैं, जिसमें वृक्षों की पूजा की जाती है। यह पर्व नये साल की शुरुआत का प्रतीक है। यह आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार है,और बसंत ऋतू में सखुआ फूल के फूलने के साथ ही आरम्भ हो जाता है।यह वार्षिक महोत्सव में पेड़ और प्रकृति के अन्य तत्वों की पूजा होत