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Showing posts from July, 2020

मेरा बचपना और बदल

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     "मेरा बचपना और बादल" मैं चुलबुली सी हवाओं से कर रही थी अठखेलियाँ वो बादलों का झुंड भी चारों ओर से घेर जैसे बना रहा था छतरी की कोई और देखे ना और अपनी बादलों की दो आंखों से निहार रहा था मेरा बचपना। बिजलियाँ भी कौंध कौंध कर मानो डरा रही थी मुझे बादल उनपे गरज मेरे बचपने को दे रहे थे आसरा अचानक ही बूंदे बरसे बिना ही बादल हुआ यूं नाराज़ जा बैठा दूसरे देश ,और चिढ़ा रहा मुझे फिर ना जाने क्या सूझी उसे ,लौट आया और रिमझिम रिमझिम बरसने लगा। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 27/7/2020

ठान लिया मैने

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नमस्कार 🙏जोहर🙏 खम्मागन्नी सा🙏😊 आज मैं बुलंद हौसले पे अपनी स्वरचित रचना प्रस्तुत कर रही हूं।जो कक आत्मविश्वास सड़ लबरेज़ है।हर परिस्थिति सर जूझने को तत्पर है।आशा करती हूँकि आप सभी को पसंद आएगी🙏                "ठान लिया है मैने " ठान लिया है मैने मंजिलों को पाऊंगी एकदिन चुनौतीओं पे है नज़र हमारी बाधाएं भी ना रोक पाएंगी। माना लक्ष्य है दुःस्कर अर्जुन का तीर चलाना होगा मंजिले हैं फूल सी तो  फूल कांटो के बिना कहाँ खिल पाई है ये वक्त तू भी दिखा अपने सितम वर्ना अफसोस करेगा एकदिन क्योंकि सफलता के राही को ठोकरें कहां रोक पाएगी । जानती हूं फ़तह का सफ़र है  पथरीला, उबड़-खाबड़ से भरा पर जफ़र के मुसाफ़िर को ये  आफतों का टीला कहां रोक पाएगी श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 17/7/2020

तेरी चाहत

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       नमस्कार🙏 जोहर🙏 खम्मागन्नी सा☺️🙏 आज का विषय है तेरी चाहत।मुहब्बत का रिश्ता एक पाक साफ रिश्ता होता है।जिसे इबादत की तरह पूजा जाता है।एक महबूब का साथ जन्नत से लगता है।साथ उसको रुषवाईयों से डर भी लगता है।और भलाई चाहने के लिए दो कदम पीछे भी हटने पड़ते है।आशकरती हुन की आपसभी को पसन्द आएगी ये ग़ज़ल🙏                  *तेरी चाहत* तेरी चाहत आजकल मेरी जियारत हो गयी है, तू है अनमोल अहसास मेरा,धड़कनो की इबादत हो गयी है। वी तेरी निश्छल सी हंसी और पीछे से आकर छू लेना, वो अदा,ओ पल मेरे लिए जैसे जन्नत सी हो गयी है। हमारे इश्क के चर्चे अब शामो-सहर आम हो गयी है, हमारी गुफ़्तगू की खबरें अब महफिलों की जान हो गयी है। तेरी मोहब्बत का नशा यूँ है मुझपर,मैं कुछ कहता भी नही , और जमाने में इसकी गहराइयों की खबर-ए-आम हो गयी है। दिल डरता है ज़माने की रुसवाइयोंसे,क्योंकि फरिश्ते सा दिल है तेरा, कहीं मेरी आशिक़ी, जला न दे चिलमन तेरा, ऐ डर सुबह-शाम हो गयी है। तुम तो रब की कबूल दुआ हो मेरी,सादगी पे तेरे दाग ना लगे कभी, ये सोच बढ़ता कदम रोक लेता हूँ, और तेरी नाराजगी नशे-ज़ाम हो गयी है। श्रीमती

आशिक़ मिज़ाज़

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नमस्कार👌 जोहार🙏 खम्मागन्नी सा🙏 आज मैं आप सभी के सामने इश्क की वो दास्तान लेकर आई हूं जो पहली मुलाकात से शुरू होती है।और दरीचे के दरारों से झांकती यादों पे खत्म होती है।आशा करती हूं कि आपकी कसौटी पे मेरी रचना खरी उतरेगी।              *आशिक मिज़ाज़* पहली मुलाक़ात में हम आशिक मिज़ाज़ हो गए भरी महफिलों में प्यार के नग़मे सुनाने लगे । अजीब सय है ये आशिक़ी,मेरी बेकरारी तेरी बेख्याली, मैं दीवानगी की हद पार करने लगा और तू मुस्कराने लगी । बड़ा दिलकश है इश्क़ का फ़साना हमारा, मुहब्बत जताते रहे नज़रों से, शब्द मौन रहे। मैं तो सीधा-साधा सा बेगुनाह राही था मंजिलों का, तेरी कातिल नज़रों ने ही बनाया जख़्मी-दिल शायर मुझे । कभी तेरी जुल्फों का गुलाब खिड़की से खुश्बू बिखेरता था फ़िज़ाओं में, अब तेरे बन्द दरीचों के दरारों से यादें झांक जाती हैं । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 15/7/2020

भीगी-भीगी पलकें

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नमस्कार🙏 जोहर🙏 खम्मागन्नी सा🙏 कोई भी प्रेमी अपने सच्चे प्यार को जिंदगी भर नही भूल पाता।और वेचैनियां उसका साथ नहीं छोड़ती।और जब भी वो उस गली से गुजरता है।बीती यादें आंखों के सामने सजीव हो उठती हैं।और अंत में दिल को लाख तसल्ली देने के बाद भी निराश ही हाथ लगती है।🙏             *भीगी-भीगी पलकें* भीगी-भीगी पलकें और गहराता सन्नाटा,झिगुरों के कलरव ये दास्तान या तो मै जानू या ये गीली तकिये का लिहाफ मौसम भी बरस जाता है झर-झर,कभी-कभी दुखी हो मेरे दास्तां से । अधखुली आंखों से यादों में रोज सैर कर आता हूं तेरी आवाज की खनक से वीरान उन गलियों से पर अब वो बात कहां उन गलियों-चौबारों में जो तेरे आने की आहट से वेचैन कर देती थी धड़कने मेरी । आज भी सजती है वो दुकाने जो हमारा ठिकाना था मिर्च,पालक पकौड़ी, चाय की खुशबुओं से गुलज़ार होती हैं पर वो इतज्जार की वेचैनियां अब कहां इन गलियारों में । कभी-कभी मैं ठिठक कर निहार लेता हूँ तेरी देहरी को बदल तो बहुत कुछ गया है पर बदला नही वो तेरी अधखुली खिड़की कभी-कभी भरम हो जाता है,कहीं छुप के तू भी तो नही निहार रही। पर आशाओं की झोली निराशाओं से

खामोशी

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 आज मैं खामोशी पे एक ग़ज़ल लिखने का प्रयास की हूं।खामोशी की भी एक अलग दुनिया होती है।वो बिना बोले बहुत कुछ नज़रों से बोल जाती है। और खाश कर तब जब मामला इश्क का हो तो।आशा करती हूं कि आपको पसंद आएगी       *खामोशी* खामोशियों में भी एक फ़साना होता है यहां जबां कम नज़रें ज्यादा बोलती हैं। इन सन्नाटों में भी, दिल के कई राज दफन है पर चेहरे पे मासूमियत लिए, नज़रे चुलबुली सी हैं। इन तन्हाइयों की भी,अपनी मशरूफियत है किसी के आने के इंतज्जार से, नज़रों में हलचल सी हैं। सुना है खामोशियों तले, इज़हारे मोहब्बत की दास्तां होती है पर नज़रे हैं शरारती, भरे महफिलों में भी बयां कर देती हैं । वो खामोश हैं, जमाने की रुसवाइयों से भी डरते हैं और इश्क़ परवाने की देखिए गुस्ताखियां, कि जख्मों की गहराइयों से भी,बेपरवाह हो गए हैं। जानना था उन्हें हमारे दिले-हाल,तो कैफ़ियत पूछते हैं और तिरछी नज़रों से,पलके झपका दीवाना बना देते हैं। उनकी ये अदा दिल को चुपके से छू लेती है और ये दिल-ए-खामोशी है कि,तन्हाइयों को चुन लेती है । सोचा खत्म हुई,अब ख़ामोशियों के अफ़साने के किस्से पर उनकी जबां तो खामोश थे ही अब

हे अघोरेश्वर हे सर्वेश्वर

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गुरु पूर्णिमा 🚩#गुरुपूर्णिमा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं🙏🌹🚩 🙏गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु 🙏 🙏गुरुर देवो महेश्वरः 🙏 🙏गुरुर साक्षात परम ब्रह्म 🙏 🙏तस्मै श्री गुरुवे नमः 🙏 🙏ध्यान मूलं गुरुर मूर्ति 🙏 🙏पूजा मूलं गुरु पदम् मंत्र मूलं गुरुर वाक्यं 🙏 मोक्ष मूलं गुरुर कृपा🙏 ....🚩🚩 🙏 जय मां सर्वेश्वरी🙏जय मां गुरु🙏 हे अघोरेश्वर, हे सर्वेश्वर हे परम गुरु परमेश्वर आप ही हैं गुरु मात-पिता मेरे आप ही हैं गुरु बंधु-सखा मेरे जब-जब मेरी नैया हिचकोले लेती तुम्ही गुरुदेव पार लगाते । हे अघोरेश्वर, हे सर्वेश्वर हे परम गुरु परमेश्वर जब जब जीवन मे घनघोप अंधेरा छाए तब तब गुरु जी आप ही प्रकाश पुंज बिखेरे हम अज्ञानी बालक तेरे न जाने जप तप पूजा तेरे बस गुरु जी तेरा नाम पुकारे इतना ही है ज्ञान हमारे । हे अघोरेश्वर, हे सर्वेश्वर हे परम गुरु परमेश्वर बस इतनी सी है हमरी विनती तेरे चरणों के धूलकण हम बस चरणों मे पड़ी रहे हमरी भक्ति इतनी करें कृपा हमपे कृपानिधान हे अघोरेश्वर, हे सर्वेश्वर हे परम गुरु परमेश्वर 🙏 जय मां सर्वेश्वरी🙏जय मां गुरु🙏 श्रीमती मुक्ता सिंह

किसी और की

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    "किसी और की" "रहते हो मेरी पहलुओं में दिल में किसी और की तस्वीर छुपाए" निगाहों से देखते हो मुझे और चेहरे में अक्स ढूंढते हो किसी और की। बेरुखियों का अब तो आलम है इतना की हम तुम्हे निहारते हैं अपलक और तुम सो जाते हो, नैनों में किसी और की याद बसाये। वो कुछ दिनों की मुलाकातें ज्यादा गहरी थी, मेरे रिश्ते से उसकी मासूमियत अच्छी थी हमारे बचपने से । ओ यादें, ओ मुलाकातें, ओ बातें आज भी बेचैन करती हैं तुझे इस क़दर कि उसकी गलियों में हो आते हो चुपचाप आंखे मूंद कर । जिक्र भी कोई छेड़ दे कहीं तो चेहरे पे यादों की मुस्कान खिल जाती है नज़रें चुराते हो सबसे पर चेहरा हाले-बयां कर जाती है। भूले से नाम दिख जाए कहीं तो घर का पता ढूंढ लेते हो इसीलिये तो लोग कहते हैं की सच्चे प्यार की निशानी है ये मुहब्बत हो अधूरी पर कहानी हो पूरी। "रहते हो मेरी पहलुओं में दिल में किसी और की तस्वीर छुपाए" श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 26/6/2020