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Showing posts from February, 2018

जिंदगी में सांसे

   "जिंदगी में सांसे" जिंदगी पे सांसे हो जाती हैं भारी कभी-कभी, मेरी जिंदगी में तुम सा प्यारा, सांसे भी नहीं है , क्योंकि सांसे तो बस नुमाइश है जिंदगी की, तुम हो तो है सांसो की भी अहमियत। मेरी यादों में तो बस तुम्हारा ही बसेरा है, लफ्ज़ भी तुम्हारी ही गुलामी करते हैं, हर लम्हों पे अधिकार जताते हो तुम, कभी अपने दिल पे भी अधिकार देकर देखो। ज़िन्दगी में सांसे तो बंद मुठ्ठी की रेत है, जो फिसलती जा रही है धीमें-धीमे, तेरी नाराजगी से एक तूफान उठा है, जो न जाने क्या-क्या उड़ा ले जायेगा। हजार गीले- शिकवे भी हो जिंदगी से, हंसकर जीना फ़लसफ़ा मजबूरी है जिंदगी का, पर सांसे भी अब भारी लगने लगी है जिंदगी में। सपने तो बहुत देखी थी ज़िन्दगी तुमसे, आशाओं का दामन थामे बढ़ रही थी,  पथरीली पगडंडियों से लड़ बढ़ रही थी, न सोचा कभी देखूंगी ये रूप भी तेरा , तुम्हे  दिखेगी मेरी हर बातों में  कमी ।      .........📝श्रीमती मुक्ता सिंह

बली चढ़ी है नारी"

   "बली चढ़ी है नारी" हर युग की एक ही कहानी , समाज की बेदी पर बली चढ़ी है नारी, भारत माता हैं पर भारत की नारी है अबला, हर जगह शोशित होती हैं सिर्फ नारी, खुबसूरत हों तो जानवरों का शिकार बनती , बदसूरत हों तो परिवार पर बोझ बनती है , हर युग में समाज की बेदी पर बली चढ़ती है नारी, घर को सँभालने वाली हर गलती की है जिम्मेवार, नारी का है नही है कोई अपना अस्तित्व, नदी की तरह सागर में मिल सागर जैसी बन जाती।        ......................📝श्रीमती मुक्ता सिंह