सब याद आती है बेइन्तहां
सब याद आती है बेइन्तहां तेरे बचपन की वो अठखेलियाँ,शरारतें सब याद आती हैं बेइन्तहां आत्मविश्वास से लबरेज़ तेरा चेहरा बचपन मे भी रहता था चमकता और सबसे अलग थी तेरी मासूमियत गलती कर कोने में छुप धीमे से मुस्काना भगवान पे चढ़ी आशीर्वाद रूपी माला को अपने सर पे ताज सा सजा खिलखिलाना सब याद आती है बेइन्तहां छोटे भाई को चुपके से शरारत सीखा मासूमियत ओढ़े अनजान बन जाना सुंदर इतनी थी मेरी गुड़िया,ठहर जाती थी लोगों की निगाहें खुद-ब-खुद तुझपे नाज़ुक थी इतनी,कि तारीफों की बारिश से भीगते ही, नज़र लग जाती थी तुझे सब याद आती है बेइन्तहा बचपन से ही अपनो से मिलती थी तुम रिश्तों की खिलखिलाहट में लपेटे वो तेरा प्यार भरा स्पर्श सबसे था अलग वो अहसास अब काश मे लिपट गया आज भी गले लग लिपट कर गोद में छुप जाती थी छोटी बच्ची सी सब याद आती है बेइन्तहां तेरे नींद से जगते ही गुलज़ार हो जाती थी मेरी छोटी सी दुनिया,अब सन्नाटा रहता है यहां हरवक्त कब्ज़ा जमाये सुबह-सुबह वो तेरा कम्बल से थोड़ा सा मुस्कराता चेहरा निकाल मनुहार करना बस पांच मिनट और मम्मी और मासूमियत ओढ़े मुस्कराते हुए सो जाना और मेरे प्यार करने का इंतज़ार करना सब