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Showing posts from November, 2021

तेरा अहसास

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 #तेरा अहसास# आज सुबह से ही फ़िज़ायों में तेरी  मौजूदगी का अहसास जाना-पहचान सा है स्मृति पटल के आईने में चलचित्र सा  तेरी यादों के जखीरे का रत्न फैला है बंद पलकों में तुम यूँ मुस्कराती हो लगता है ये कोई ख्वाब या तू ही है आंखे खोलते ही यथार्थ की पथरीली धरातल चिढ़ाती सी आंखे तरेरती है मेरी परी,तुम्हे तो मै प्यार से परी बुलाती थी पर मै क्या जानती थी तुम सच में एक परी हो जो सुनहरे ख़्वाबों के झूले में आई थी  मुझे झुलाने,और जब मंजिलें दिखने लगी तो कालरूपी राक्षस की लग गयी नज़र तुझे काल तूने डस लिया मेरी खुशियां सारी पर मां की हाय एकदिन लगेगी तुझे भी अब तो तेरे अहसासों के खुशबुयों से जीना है  ऑंसूयों के समंदर में खुद को डुबो के  काश कोई ये कह दे,ये एक बुरा ख्वाब था तू फिर से खिलखिलाती-इठलाती थोड़ा मनुहार जताती आ जाये कहीं से मैं गोद में छुपा लुंगी तुझे,दुनिया की नज़रों से ममता के सागर से सराबोर कर निहारूँगी तुझे श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 22/11/21

कैसे जियूँ तेरे बिन

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 *कैसे जियूँ तेरे बिन* सब्र ही नही होता अब,लाख समझाऊं दुनियादारी चूक ही नही मिलती,लाख ढूंढता दिल बारीकी से सपने सज़ा रही थी तेरी शहनाइयों की गीतों के बोल संभाल रही थी चुपके से डोली-काहार और न जाने कितने ख़्वाब खुली आँखों से देख रही थी रोज नए कपड़े-गहने सभी संभाल रही थी तुझे सपनों में सजा-सजा कर रिश्तेदारों की लिस्ट भी बना रखी थी भूले-बिसरे रिश्तों को भी संभाल रही थी हर रश्मों को नए अंदाज़ में निभाने को चुन रही थी एक्सपर्टों की टोली ताकि कमी ना रहे मेरी लाडो के शादी में उंगली ना कोई उठाये कभी रिवाज़ों को लेकर बस इंतज़ार था तेरे सपनों की उड़ान भरने को फिर हर ख्वाब रखती तेरे कदमों में नियति भी दूर खड़ा बन रहा था जाल मैं अनजान सो रही थी ख़्वाबों की ठंढी छांव में जाने कहाँ से एकपल को आया क्रूर काल ले गया मेरी धड़कन को बवंडर में छुपा कर अब कैसे जियूँ तेरे बिन मेरी लाडली कोशिशों की पहाड़ चढ़ती हूं हरपल जिम्मेवारियों की बन्धन में खुद को कैद कर तभी तेरी यादों का झोंका आता है और उमड़ पड़ते हैं दर्द के सागर  नयनों से हर बन्धन को तोड़ कर श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 19/11/21

तस्वीरें देख अहसासों को जीना है

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 #तस्वीरें देख अहसासों को जीना है# तेरी तस्वीर जब भी देखती हूँ अहसासों की लहरें बेताब हो उठती हैं प्रयासों की पतवार थामे आगे बढ़ती हूं तब ही यादों का तूफान आ घेर लेता है कभी डैडी,कभी मम्मी को आलिंगन कर बांध रही थी तुम सुनहरे ख़्वाबों के आसमां में अनजाने में सज़ा रही थी बड़े प्यार से यादों के घरौंदों को,बीते लम्हों के ख़ज़ाने से वक़्त की लगी ऐसी नज़र,फ़ना हो गयी खुशियां पल में,धीमी हो गयी हमारी नब्ज़  हमारी खुशियों की मंज़िल थी तुम हमारा स्वाभिमान,गर्व थी तुम मेरी लाडली बहुमूल्य अनोखे बंधनों की गवाह  तेरी तस्वीरे गुजरे लम्हों की इबादत हैं जहाँ हो खुश रहो,शायद ईश्वर को  मुझसे ज्यादा जरूरत थी तुम्हारी अब तेरी यादों से ही लाड लड़ाएंगे तुम भले ही चली गयी मुझे छोड़कर पर मेरी धड़कनों से कैसे जा पाओगी तेरे बिना जीती हूं,कर्तव्यों को निभाने को अब तस्वीरे देख,अहसासों को जीना है शिकायतों का पुलिंदा है,इंतज़ार का अंधेरा है दिल में दर्द, होठों पे मुस्कराहट का पहरा है आसरे की देहरी पे,तेरी आहटों की उम्मीद है श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 9/11/21

ऑंसूयों के सागर में तुफानो का सैलाब है

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 #ऑंसूयों के सागर में तूफानों का सैलाब है# रूह के रिश्ते, ज़ज़्बातों का अहसास सब रौशन थे तेरी हंसी की फुलवारी में त्योहारें आती रहेंगी,जाती रहेंगी पर अब ना उमड़ेगी उमंगों की लहर बस अब ऑंसूयों के सागर में है तूफानों के सैलाबों का बसर बाहर दिये की लरज़ती रौशनी का साम्राज्य रंगों की अठखेलियाँ करती मुस्कराती रंगोली हंसते-खिलखिलाते तुम्हारे दोस्तों की टोली पर मेरी देहरी उदास राह देख रहा तेरी ना दियों का साथ,ना खिली है रंग-बिरंगी रंगोली बस उमंगों के साम्राज्य में उदासियों का डेरा है वक़्त के क्रूर मज़ाक के ठहाकों की गूंज से  अब मेरा मन सहमा सा छुप रहा  जिम्मेवारियों के दहलीज़ भीतर कोशिशों की कश्ती में बिन पतवार चल रही उम्मीदों के दिये को तूफानों से बचाती कहीं से मिल जाती तेरी झलक और  चुम लेती तेरे आत्मविश्वास से भरे माथे को और तुम नखरे दिखाती  प्यारी सी आवाज़ में कहती अरे यार मम्मी क्यों हो उदास ,मैं यहीं तो हूं ।। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 4/11/21

लौट कर आना ही होगा

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 #लौट कर आना ही होगा# वक्त के बेरहम काल की यूँ पड़ी नज़र मेरे दिल का टुकड़ा जुदा हो गयी मुझसे जिसे पलकों पे बिठाये रखा था मैंने  सतरंगी फूलों के बिछौने पे सुलाया था मैंने जाने कहाँ से पतझड़ आया चुपके से  मेरे बगिया को वीरान कर गया तुफानो से मैं तो ख़्वाबों के सावन के झूले में  लिए बैठी थी अपनी लाडो को छुपाए  इंद्रधनुषी रंगों की डोली सजाए द्वार पे बन्दनवार लगाए,शहनाई को सजाए जाने किसकी लगी नज़र,  उजड़ गया खुशियों का चमन मेरा अब तो आंसुओं की लगी है झड़ी हरपल ख्वाब टूटे, दिल टूटा,फिर भी हैआसरा  एक दिन रौशन होगा हमारा जहाँ लौट कर तुम्हे आना ही होगा  जो यूँ रूठ कर गए हो ,चुपके से जहाँ से मेरी ममता के आंचल में फिर से मासूम सी मेरी राजकुमारी मुस्कराना ही होगा।। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकराज 30/10/21