तेरा अहसास
#तेरा अहसास# आज सुबह से ही फ़िज़ायों में तेरी मौजूदगी का अहसास जाना-पहचान सा है स्मृति पटल के आईने में चलचित्र सा तेरी यादों के जखीरे का रत्न फैला है बंद पलकों में तुम यूँ मुस्कराती हो लगता है ये कोई ख्वाब या तू ही है आंखे खोलते ही यथार्थ की पथरीली धरातल चिढ़ाती सी आंखे तरेरती है मेरी परी,तुम्हे तो मै प्यार से परी बुलाती थी पर मै क्या जानती थी तुम सच में एक परी हो जो सुनहरे ख़्वाबों के झूले में आई थी मुझे झुलाने,और जब मंजिलें दिखने लगी तो कालरूपी राक्षस की लग गयी नज़र तुझे काल तूने डस लिया मेरी खुशियां सारी पर मां की हाय एकदिन लगेगी तुझे भी अब तो तेरे अहसासों के खुशबुयों से जीना है ऑंसूयों के समंदर में खुद को डुबो के काश कोई ये कह दे,ये एक बुरा ख्वाब था तू फिर से खिलखिलाती-इठलाती थोड़ा मनुहार जताती आ जाये कहीं से मैं गोद में छुपा लुंगी तुझे,दुनिया की नज़रों से ममता के सागर से सराबोर कर निहारूँगी तुझे श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 22/11/21