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मुस्कराहटें उधार मांग लाई हूं

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 *मुस्कराहटें उधार मांग लाई हूं* जरूरी नही,जिनके चेहरे पे हंसी हो उनके दिलों में गमों का सागर न हो । कुछ मुस्कराहटें उधार मांग लाई हूं गमों ने इतना कंगाल किया  थोड़ी देर,दोस्तों की महफ़िल में बैठ यादों को आग़ोश में छुपा लेती हूं तुम सपने दिखा,दगा दे गए भरी महफ़िल में शुक्रिया तेरा ये मेरे दिल-ए-अज़ीज़ जी लुंगी,तेरी तस्वीरों से बात करते हुए शुक्रिया,शुक्रिया,शुक्रिया तेरा श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 18/2/23

नज़र का टीका लगा देती

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 *लगा देती नज़र का टीका सबसे छुपा कर* कुछ दर्द में,दुआ बेअसर होता है काल जब प्रबल हो तो  आशीर्वाद कम पड़ जाते हैं माना आना-जाना सब लिखा है ईश्वर की कर्म की किताबों में गुजरा जन्म किसने देखा है हिसाब करना है तो कर ये मेरे मालिक,इस जन्म का दुखाया ना दिल हमने किसी का अनजाने में हुई हो गलती तो माफ़ करते इतना बड़ा ना सज़ा देते खोजने निकली हूं यादों की गलियों में मिलता ही नही गुनाहों का वो पुलिंदा जाने किस अलमारी में बन्द है दफ़न है सागर की अनन्त गहराइयों सा उम्मीद के दरीचे पे बेचैन सी बैठी हूं राह तक रही ना आनेवाले मुसाफिर की बड़ा बेईमान निकले तुम सपने दिखा छोड़ गए तन्हाइयों में क्या कमी थी मेरे ज़ज़्बातों में,प्यार में कर गए अकेला इस काली रात सी अंधेरे में काश आ जाते फिर से हंसते-मुस्कराते छुपा लेती प्यार के आंचल में लगा देती नज़र का टीका सबसे छुपा कर। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 8/2/23