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Showing posts from September, 2018

बीवी को चाहिए टीवी और भाई को चाहिए बीवी

बीवी को चाहिए टीवी और भाई को चाहिए बीवी आज बच्चों के साथ बैठ कर कौन बनेगा करोड़पति देख रही थी ।मेरा छोटा बेटा को ये क्विज़ पे आधारित है इसलिए बहुत पसंद है । वो इस प्रोग्राम के समय चैनल बदलने नहीं देता ।और घर बैठो मोबाइल पे खेलता है ।उसमे एक प्रतिभागी आये थे , उनके बारे में बताते हुए माननीय अमिताभ बच्चन जी ने कहा की इनको चाहिए बहुत सारे पैसे और बीवी ।पता नहीं क्यों मुझे उनके इतना कहते ही अपने बचपन की एक बात याद आ गयी और हंसी आने लगी ।साथ ही अपने पाप जी को याद कर आँखे भी भर आई । बात बहुत पुरानी है उस समय हम बहुत छोटे थे और अचानक ही पापा जी कहीं से आये और बोलने लगे " बीवी को चाहिए टीवी और भाई को चाहिए बीवी" बहुत परेशानी है इस जिंदगी में ।हम बच्चे उनकी बात को सुनकर मुस्कराने लगे ।वैसे तो हम अपने पापा जी के सामने भी नहीं जाते थे बचपन में ।बहुत डरते थे जबकि पापा जी हमे बहुत प्यार करते थे।गगर में हमारा ही राज़ चलता था ।हमारी  बात घर में कोई नहीं उठाता था ।जो हमारी बात नहीं रखता उसकी खैर नहीं होती ।जिससे मेरे भाई मुझसे बहुत चिढ़ते थे । बात ऐसी थी की उस समय सभी जगह वो एंटीना वाला दूरद

कर्मा पूजा

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कर्मा पूजा करमा पूजा सरहुल महोत्सव की तरह ही प्रकृति की पूजा है ।यह छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के आदिवासियों का एक प्रमुख त्योहार है। जो कि भादो  मास की एकादशी के दिन(लगभग सितम्बर में) और कुछेक स्थानों पर उसी के आसपास मनाया जाता है। इस मौके पर आदिवासी करम के पेड़ की डाल को अखरा में रोपित कर प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते हैं, साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं। इस मौके पर एक बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, जिसे कोपलित होने के बाद 'जावा' कहा जाता है। यही जावा आदिवासी बहनें अपने बालों में गूंथकर कर पूजा करती हैं । इस अवसर पर सभी आदिवासी जनजाति महिला -पुरुष ढोल और मांदर की थाप पर उल्लास पूर्वक झूमते-गाते हैं। यह दिन इनके लिए विशेष होता है , जिसके कारण सभी सभी उल्लास से भरे होते हैं। इनकी परम्परा के मुताबिक, खेतों में बोई गई फसलें बर्बाद न हों, इसलिए प्रकृति की पूजा की जाती है। इस दिन आदिवासी बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए व्रत रखती हैं। और इनके भाई &

हिंदी हैं हम

हिंदी हैं हम हिंदी हैं हम हिन्दुस्तां है वतन हमारा, हिंदी हमारी अस्मिता, हिंदी हमारी मान, हिंदी सभी भाषाओं को है अपने में समेटी, गंगा-यमुनी तहजीब है इसकी, ना है कोई बैरी, पूरब -पश्चिम में सेतु बनाती हिंदी भाषा हमारी, 14 सितम्बर 1949 को मिला था राजभाषा होने का मान, पर साथ में सौत के रूप में अंग्रेजी भी थी बन-ठन आई 15 साल बाद लाल बहादुर शास्त्री ने हिंदी के लिए उठाया था आवाज, पर सभी के शोर में दब गई उनकी आवाज,और अंग्रेजी सौत ही बनी रही इसकी , 14 सितम्बर 1959 को पहली बार देश में उल्लास से हिंदी दिवस मना, जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन की थी इसकी शुरुआत, और दुनिया भर में इसके सम्मान में होने लगे आयोजन। 10 जनवरी 1975 में नागपुर बना इसका गवाह, 30 देशों के 122 प्रतिनिधि ने नागपुर में किया आगाज, फिर 10जनवरी को ,2006 में डॉ.मनमोहन सिंह ने  विश्व हिन्दी दिवस के रूप में किया इसका सम्मान। इस दिन विदेशों में भी मनती है विश्व हिन्दी दिवस, भारतीय दूतावास में होते हैं आयोजन, हिंदी शब्द हमारी वाणी के लिए है अमर वरदान, स्वर है इसके मधुर- व्यंजना है इसकी मनुहारी, सब के लिए अलग-अलग होते हैं शब्द इसके, माता-पित

तीज त्योहार

    *तीज त्योहार* दिल की श्रद्धा ,प्यार और विश्वास का, यह तीज त्योहार है प्यार का । सखी रे करो आज सोलह श्रृंगार , माथे पे बिंदिया,आँखों में काजल, रचायो हांथों में मेहंदी, चूड़ियों से भरी हाथ करे खनखन, पांवों में बिछिया,पाजेब की हो छमछम, चुंदरी वही साजो जो पिया मन भाये, मांग में भरी हो पिया के नाम की सिंदूर, करो सखी रे आज सोलह श्रृंगार, आज अर्द्धनारीश्वर शिव और माता पार्वती से, वर मांग करना है, अक्षय, अमर, अखंड सुहाग, हर जन्म में हम पिया के और पिया हमारे हों, माता पार्वती आपसे विनती है इतनी, मनोकामना पूरी आज करना हम सुहागन की, सदा सुहागन,अखंड सौभाग्यवती का देना हमे वरदान । आप सभी को तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ । ..................📝श्रीमती मुक्ता सिंह

जिंदगी है बड़ी वेवफा

जिंदगी है बड़ी वेवफा जिंदगी तू है बड़ी वेवफा, खुशियाँ तो मिलती थोड़ी, गमों से है सजा जहाँ, ख्वाहिशें तो हसीन हजारों, पर मुकम्मल जहाँ है थोड़ी, खुशियों की आहटें हैं धीमी, गमों का है जहाँ बड़ा। बहुत खुश थे हम ये जिंदगी, आँखे मूंदे चल रहे थे मखमली घासों पे, अचानक से काँटो से छलनी हो गए पांव, अभी सम्भले भी न थे की ठोकर लगी , गिरे तो पथरीली जमीं थी । बहुत गुमान था अपने प्यार पे हमे, पर वो तो था बंद मुट्ठी की रेत, जिसे जितना संभाले उतना ही फिसले, बस खुशियाँ हैं मेरी गीली रेत , जो बस उतना ही देर मुट्ठी में बंद है, जितनी देर है गीली। .........📝श्रीमती मुक्ता सिंह