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Showing posts from May, 2020

महारानी अहिल्यबाई होलकर

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  *महारानी अहिल्याबाई होलकर* जब चारों फैला था अराजकता और अत्याचार का शासन, जनमानस रूढ़िवादिता में जकड़ सिसक रही थी, येसे में शासन संभाली निर्भीक वीर माता महारानी अहिल्याबाई, महान योद्धा के साथ थी कुशल तीरंदाज भी, कई युद्धों में  हाथी पे सवार किया सेना का कुशल नेतृत्व, घोड़े पे भी सवार कुशल रणबकुरा बन पति का भी देती थी साथ, इतिहास में भी पहली महिला शासिका का कराया नाम दर्ज, थी अपने ससुर मल्हार राव होलकर की आज्ञाकारी पुत्रवधू, अपना सब खोकर जनता को ही सबकुछ माना, विधवाओं की संपति जब्त कानून को भी तोड़ा, महिलाओं को उनका सम्मान और अधिकार दिलाया, शिव शंकर की थीं परम भक्त , राजचिन्ह में भी लिखती शंकर, रुपयों पर शिवलिंग, बेलपत्र और पैसों पर नंदी को उकेरती थी, शिव शम्भू को गदी सौप, उनकी सेविका बन राज्य चलाती थी, सफेद वस्त्र में साध्वी बन दूसरों के दुखों को पार लगाती थी, काशी विश्वनाथ की सुधि ले की थी मंदिर नवनिर्माण, कई धर्मस्थलों पे बावड़ी, मंदिर, सड़कों का किया नवनिर्माण, नदियों के हर घाट पे महिलाओं के सम्मान का रखा ध्यान, स्त्री - शिक्षा और उनके सम्मान के लिए भी चलाया जा

दसकों का फासला

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    *दसकों का फासला* दसकों का है कुछ यूं फासला एक प्यार वो था जो नज़रों से हो जाता था एक प्यार ये है जो तोहफों के लिए टूट जाता है। पहले तो जुबान ना बोलती थी कुछ नज़रें बयां कर जाती थी दिल का हाल आज मोबाइल पे बातें करते है सारी रात फिर भी दिलफेंक आशिक़ ही मिलते हैं हरबार। दसकों का है कुछ यूं फासला वो इंतजार का हर लम्हा कटता था गिन गिन आज तो विडियो कॉल दे जाती है खबर हर पल की प्रेमी एक दूजे के संग बैठने से भी कतराते थे जमाने से आज तो पकड़े जाने पे कह देते है प्रोजेक्ट बना रहे थे। पर हर आशिक़ के लिए नहीं है ये व्याख्या कहा जाता है ना कि जो के साथ घुन भी पीस जाता है एक सड़ी मछली पूरा तालाब गंदा कर जाता है। इंटरनेट ने फैलाया येसा माया कि बच्चो के साथ बूढ़े भी हो रहे छिछोरे अपने को कह रहे जवान, जवान को बना रहे बूढ़े। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 30/5/2020

हम हैं पत्रकार

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   *हम हैं पत्रकार* 30 मई 1826 को मिला देश को नया तलवार उदन्त मार्तण्ड बना वो हथियार पंडित युगल किशोर शुक्ल को राजा राम मोहन ने दिया सहयोग बंगाल बनी पत्रकारों की कर्मभूमि अंग्रेजो के लिए बने मुसीबत भारत के लिए बने वरदान । तभी तो आज गर्व से कहते हैं हम देश का चौथा स्तंभ हैं हम हम हैं एक पत्रकार हम देश चलाने को देते कई बलिदान अनजानी राहों में भी नहीं डरते सच्चाई की खोज में निकल पड़ते कई बार धन से वंचित सरस्वती की करते आराधना । सीमा पे गोलियों की बरसात हो या देश के गद्दारों के इट्टे - पत्थर या हो कोई देश पे पड़ी आपदा भारी नहीं हटते अपने कर्तव्य पथ से येसे हम हैं पत्रकार । हमारे देश के सभी निर्भीक पत्रकारों को समर्पित 🙏 जय हिन्द, जय भारत🙏 श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 30/5/2020

Love qoutes

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    *अधूरी प्रेम* मेरी अधूरी प्रेम की, तुम संपूर्ण कहानी हो मै तुझमें हूं-या-नहीं, मुझमें तो तुम-ही-तुम हो। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 29/5/2020    *दिल में प्यार* हो अगर दिल में प्यार तो चांद भी धरती पर उतर आता है आसमान में दिखता हो अधूरा पर विश्वास हो तो हाथों में पूरा उतर आता है। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 29/5/2020      *किनारा कर लिया* कहते थे तेरे इश्क में,चांद-तारे तोड़ लाऊंगा तेरी मुहब्बत ही मुकम्मल जहां है मेरा आज किसी ने चेहरा क्या जलाया मेरा कि तूने नज़रें यूं फेर ली मेरे वजूद से कि परछाइयों से भी किनारा कर लिया। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 29/5/2020 मैंने कहा क्या तुम भी प्यार करते हो मुझसे पर तुम थे किसी और के ख्यालों में गुम और जो मैंने कहा तुमने सुना नहीं श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 29/5/2020

राधा,रुकमणी,मीरा - कृष्ण प्रेम

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       आज मै अपने ब्लॉग की शुरुआत कर रही हूं प्रेम की परिभाषा से।इस ढाई अक्षर के शब्द की उत्पति भी अधूरी होती हुई भी पूरी सी है।       कृष्ण की प्रेमिकाओं में तीन नाम आते हैं।राधा, रुकमणी और मीरा।पर तीनों की व्याख्या अलग अलग है।निष्वार्थ उन्मुक्त प्रेम, दाम्पत्य के बंधन में बंधा प्रेम और उपासना से लीन बिना बंधन निश्वार्थ प्रेम।    इसको मैं थोड़े से शब्दों में व्याख्या करने का प्रयास की हूं।पर इतना जानती हूं कि प्रेम निस्वार्थ है। अपने में ही परिपूर्ण है ।चाहे वो जिस रूप में हो। पति - पत्नी , मां बाप, भाई बन्धु, सखा भक्ति जैसे अनन्नत प्रेम ।प्रेम की ना परिभाषा है ना व्याख्या बस ये दो आत्माओं के मिलन का नाम है। *राधा, रुकमणी,मीरा का - कृष्ण प्रेम * प्रेम की है अनेक परिभाषा, जिसकी जैसी भक्ति वैसा पाया राधा ने किया कृष्ण से प्रेम येसा बिन मोल बिक गई, ना रही वह राधा जैसे दो आत्मा मिल बन बैठे हो एक ना रहा भेद,ना रहा बंधन शरीर का सारा ब्रज राधा, सारा ब्रज बने कृष्ण गर्म दूध राधा पिए तो छाले पड़े कृष्ण को और कृष्ण की बांसुरी भी पुकारे राधा राधा। प्रेम तो रुकमणी ने भी किया था

आओ मिलकर, कुछ कोट्स

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     *आओ मिलकर" आओ मिलकर एक नया जहां बनाए चारों ओर है स्वार्थ का समंदर इसमें हम निस्वार्थ की चपू चलाए तुम्हारे साथ में सारा जहां है ये दोस्त आओ मिलकर नयी दुनिया बसाएं श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 28/5/2020           "कम से कम* ये मेरे ईश्वर इतनी सी मोहल्लत दे दे कि कम से कम देख सकूं अपनों को कोरोना से तो हमने लड़ लिया हंसते हंसते कम से कम विदा होऊं इस दुनिया से तो आंखों में अपनों की छवि और होठों पे मुस्कान हो श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 28/5/2020       * खालीपन * अपने खालीपन को भरते हैं हम तेरी यादों की तन्हाइयों से और दिल में आस जगाते है हम तेरे वादों के भरोसे पे श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 28/5/2020                 *कांटों की चादर* मैंने हर परेशानी को दोस्त बनाना सीखा है क्यूंकि ये दुनिया बड़ी जालिम है राहों में रोड़े नहीं कांटों की चादर बिछाती है श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 28/5/2020

दोस्ती तोड़कर

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        *दोस्ती तोड़कर* मन में अजीब सी उलझने उठ रही हैं तुझे माफ़ करके भी ना जाने कैसी बेचैनी है कभी तुम मेरे दिल-ए-नूर थे ये दोस्त आज तेरे नजदीकियों से भी घबरा रही हूं। दोस्त हमे दो जिस्म एक जान बुलाते थे कभी आज तेरी हंसी में भी फरेब नज़र आता है मुझे ये दिल आज भी इस क़दर गुलाम है तेरा, कि तेरी एक मुस्कराहट पे न्योछावर हुए जाते हैं। मैंने तो सिर्फ तुमसे ही दिल लगाया था, पर तुम तो कपड़ों की तरह बदलते हो दोस्त मै तेरी दोस्ती के रंग में रंगी थी इस क़दर कि हर रंग छू कर मुझे हो जाता था बेअसर  पर तूने मुझे जमाने के हर रंग के दिखाए तेवर। तुझपे हर रंग निखरा,सिर्फ मेरा ही रंग रहा बेअसर मैंने तुमसे दोस्ती निभाई हर रिश्ते को तोड़ कर और तूने तो हर रिश्ते निभाए दोस्ती तोड़कर। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 28/5/2020

कुछ कोट्स (आदत से मजबूर,कुछ कहते,समझते नहीं)

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     *आदत से मजबूर* मजबूरियों का ऎसा आलम है कि ना चाहते हुए भी है तुझसे दूरियां जानता हूं दर्द के दीवारों के उस पार हो तुम और वक्त भी मुस्कराती है हमारी मजबूरियों पे क्यूंकि वक्त भी अपनी आदतों से है मजबूर । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 27/5/2020      *कुछ कहते* हम अगर कुछ कहते हैं तुम बेदर्द बन यूं मुस्कराते हो पर तेरे इश्क का यूं नशा है मुझपर कि पर्दा भी करते हैं तो हाथों में तेरी तस्वीर लेकर। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 27/5/2020     *तुम समझते नहीं* तुम समझते नहीं मेरे इस राज को चेहरे को इस पर्दे के पीछे छिपाने का रुख पे ये झीनी सा पर्दा ना डालूं तो नज़र लग जाएगी मुझे तेरे इश्क़ का श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 27/5/2020

मन का दर्पण

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      *मन का  दर्पण* देखो, मन का दर्पण क्या क्या दिखलाती है हमारे व्यक्तित्व के हर वो पल बताती है जो हम सब से हैं कुछ छुपाते कुछ दिखाते जहां कुछ अपने दिखे,जो हैं चेहरे पे कई चेहरे लगाए कुछ शुभचिंतकों के, जो हर वक्त हैं संग मेरे। मै बैठा था यूंही अनमना सा, कुछ उदास सा हिसाब किताब कर रहा था अपने अहसास का रिश्तों की मर्यादाओं का, उनकी तल्खियों का जमाने की ऊंची नीची, बड़ी छोटी नीतियों का अपने अहंकार का, अपने स्वाभिमान का तभी अंदर से आवाज आई कहां भटक रहे हो देखो,मन का दर्पण, तब करो हिसाब किताब। अपनों के चेहरे झांक रहे थे, उस दर्पण में लुक छुप के कुछ धुंधले से कुछ ऊर्जा से चारों ओर उजाले लिए कुछ मेरी भी थी, मन की भावनाएं छुपे से क्रंदन करते कुछ अभिलाषाएं जिम्मेवारियों का घूंघट ओढ़े आज रूबरू हो रहे थे, जैसे हम अपने आप से । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 26/5/2020      *दूर ले जाएगी* दूर ले जाएगी हमको तुझे भूलने की जिद हमारी आज अकेला बैठा हूं इस सफर में तन्हाइयों को साथ ले जाने की जिद में और मुस्करा देता हूं ये सोचकर कि साथ में तन्हाइयां,पर दिल में तो तुम हो क

सोचा तो था, गुमशुदा रास्ते

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    *सोचा तो था* सोचा तो था कि तुमसे मिलकर हम इजहारे- मोहब्बत करेंगे पर तुम्हारे मशरूफ रहने की अदा ने मुझे घायल कर दिया हमे डर है कि तुम्हारी ये अदा कहीं तुम्हे तन्हा ना कर दे क्यूंकि तुमपे तो मसरूफ़ रहने का जैसे जुनून ही सवार है। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 25/5/2020            *गुमशुदा रास्तों पर* मै गुमशुदा रास्तों पर यूं बढ़ता ही जा रहा हूं जैसे खोज रहा हूं अपनी अनमोल ख्वाहिशें जो ना जाने कब से है मुझसे गुमशुदा और खफा जान रहा हूं इन रास्तों की नहीं है मंजिलें पर मेरी ख्वाहिशें दिखा रही हैं मुझे रास्ता । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 25/5/2020

तस्वीर

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    *तस्वीर* आज नज़रों से ये तस्वीर गुजरी लगा जैसे कल की ही बात हो कल तुम मेरे पास थे जितने आज दूर हो उतने वो लम्हा बीता दिन बीते महीने और साल बीते हर साल आती है ये पूजा अपने नियत तिथि पे पर वो लम्हा हुआ दुर्लभ अब इन तीन सालों में कभी कर्तव्य बोध कभी जिम्मेवारियों का बंधन बनी दीवारें बड़े निष्ठुर हो गए हो तुम अपनी कार्य  -शीलता में तुम क्या जानो मेरे लिए कितने मायने रखते हैं ये लम्हे कभी तुम मेरी कोमल भावनाओं को स्पर्श तो करो पर मै भी ढूंढ़ लेती हूं अपने मर्ज की दवा जो तुझसे जुड़ी हो कर लिया मैंने भी ऑनलाइन तेरी पूजा दिल को तसल्ली दी पर तेरा आशीर्वाद का वो स्पर्श ना मिला ये इक्कीसवीं सती में कहां है वो नब्बे के दशक की अनुभूतियां आज नज़रों से एक तस्वीर गुजरी है और दे गई कितनी सारी यादों की सौगातें। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 25/5/2020

समय की रेत

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    *समय की रेत फिसलती हुई* मुट्ठी से समय की रेत फिसलती हुई सी जा रही है जिंदगी को समझते- समझते उम्र निकलती सी जा रही है मंजिले दूर खड़ी मृगमारिचिका सी चिढ़ाती हैं हमें अपनो को सवांरते- संवारते वेगाने से बन बैठे हैं हम दूर कहीं खड़ी कामयाबियों की मंजिलें बुला रही हैं हमें और कर्तव्य पैरों में बेड़ियां डाले मुस्करा रही हो जैसे मैंने भी हंसकर कहा मंजिलों से कर्तव्यों से बड़ी नहीं कामयाबियां रेत पे तो नाम लिख दूं मैं पर समय की आंधी उड़ा ले जाएगी क्यूंकि रेत तो आधीन है उन हवाओं और लहरों की तो क्यूं ना मै समय की रेत को रिश्तों के अहशाशों से भिगो दूं और भीगी हुई रेत को मुट्ठियों में भर जी लूं। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 24/5/2020        *थोड़े से सुख के लिए* थोड़े से सुख के लिए क्या पाया और क्या गंवाया आज देख लो सड़कों को नापते इन लड़खड़ाते नंगे पैरों को जीवन की आस में मौत की तरफ बढ़ते इस रेले को। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 24/5/2020  *आराम करो आराम का दिन है* आज बड़े प्यार से जब तुमने कहा था मुझे आज आराम करो आराम का दिन है तो दुनिया की हर खुशी मिल

तुमको देखे हुए

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    *तुमको देखे हुए* तुमको देखे हुए जमाने बीत गए पर लगता है जैसे आज की ही बात हो और पलकें बन्द कर तेरा अक्स देख लेता हूं। तुमको देखे हुए जमाने बीत गए पर आज भी जब उन गलियों से गुजरता हूं वहां की हवाओं में बिखरी तेरी खुशबू समेट लेता हूं। तुमको देखे हुए जमाने बीत गए पर आज भी उन फिजाओं में तेरे कहकशे गूंजते हैं और मैं उन कहकशों में तेरी शिकायतें सुन लेता हूं। तुमको देखे जमाने बीत गए पर आज भी जब गुजरता हूं तेरी गलियों से तुझे देखने की चाह में ठिठक सा जाता हूं पर अब उन गलियों में ना तो कोई अधखुली सी खिड़कियां है ना ही सहेलियों से गप्पे लड़ाती गुजरती हुई तेरी तिरछी निगाहें। और मैं इन गलियों से घायल दिल समेट लाता हूं । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 23/5/2020      *कुछ qoutes*        *छुप नहीं सकते तुम* छुप नहीं सकते तुम चाहे लाख डाल लो परदे मै वो हवा का झोंका हूं तुम्हे हौले से छू जाता हूं।        *ये ठंडी हवा का झोंका* ये ठंडी हवा का झोंका जैसे तेरा पैग़ाम लाया हो तुझे छू कर तेरी खुशबू को मेरे पास ले आया है।

वट सावित्री पूजा

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  *वट सावित्री पूजा* सुहागन के लिए बड़ा महत्व है इस पूजे का हार कर भी जीतने की है ये पूजा अखंड विश्वास और प्रेम की है ये पूजा सतित्व की पहचान है ये पूजा । माता सावित्री ने यमराज को भी विश्वास से था हराया अपनी वाकपटुता,निर्भीकता से काल को भी था मोहा अपनी सिंदूर के साथ मांग लाई थीं वैभव ससुर का खोया विश्वास और पिता का वंश अपने लिए भी मांग लिया सहश्रपुत्रवती का वरदान। यह पूजा प्रकृति से भी प्रेम करना सिखाता है हमें वट के जड़ से लेकर फल सभी में है औसाधियां हर असाध्य का है रामबाण ये वट वृक्ष तो क्यूं ना करें हम सब इसकी पूजा पूर्वजों ने सिखाया हमे प्रकृति से प्रेम करना इसीलिए हर बड़ी सीख को है धर्म से जोड़ा । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 22/5/2020

कुछ कोट्स

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    *सुख है तो बस इतना* सुख है तो बस इतना है कि तुम खुश हो और हम साथ है इन तन्हाइयों में भी एक दूजे में खोए हैं अपनी दुनिया बसाए श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 21/5/2020            *दूर का सफर है* दूर का सफर है ये हमसफ़र जरा साथ देना चारों ओर है बस तन्हाइयों का आलम और बीच मझधार में फंसी हमारी नैया उम्मीद ना छोड़ना, आगे बढ़ते ही है जाना क्यूंकि पतवार बनी है हमारी किस्मत । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 21/5/2020          *सब सुरक्षित रहें *          *अम्फान*तूफान तूफान जब आता है तबाही कम कहां मचाता है अमीर के महलों में लगे हैं सौ हिफाजते मिट्टी की घरें तो सिर्फ गरीब के ही तोड़ जाता है तूफान आता है संग तबाही लाता है बेहिसाब खेत की फसलें तो सिर्फ गरीबी के ही तबाह होते है अमीरों की फैक्ट्रियां कहां तबाह होती हैं ईश्वर से अब यही है प्रार्थना सब सुरक्षित रहें अब अमीर गरीब के तबाही का मंजर में ना हो फासला । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 21/5/2020

हानी लाभ की बात

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    *हानी लाभ की बात* इश्क में हानी लाभ की बातें नहीं होती तुमसे मोहब्बत की है कोई सौदा नहीं ना तुम सौदागर हो ना हम सौदागर हैं फिर ये इश्क ए दास्तां में सौदा कहां से आया। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 20/5/2020

परछाइयां उभरती है

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         *परछाइयां उभरती है* कितनी परछाइयां उभरती है जेहन में तेरे तेरे प्यार की कुछ आडी सी कुछ तिरछी सी जैसे किसी झील में लहरों की मोहताज हो अक्स। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 20/5/2020

निष्ठुर था वक्त

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    *निष्ठुर था वक्त* वक्त रोकना चाहा था हमने उस लम्हे में जब एक पल मिल कर बिछुड़े तुम आवाजें भी दी पर निष्ठुर था वक्त हमारा बिछड़ गए हम सदा के लिए एक होकर श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 20/5/2020

अगर मगर की बातें छोड़ो

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     *अगर मगर की बातें छोड़ो* अगर मगर की बातें छोड़ो, मुद्दे पे आते हैं हम मैंने क्या कमी की,जो तुमने दी इतनी बड़ी सजा मेरा गुनाह बस इतना है ये मेरी जाने वफ़ा कि कल भी तुम्हे चाहते थे, आज भी करते हैं सजदा। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 19/5/2020

मैंने कब कहा

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    *मैंने कब कहा* मैंने कब कहा कि तुम बेवफ़ा हो बस समय अनुकूल नहीं थे हमारे मोहब्बत के तुम्हारी भी लाज़िमी थी अपनी शर्मो - हया हमारी भी लाज़मी थी जिम्मेवारियों के बंधन ना तुम बंधन तोड़ पाए ना हम कदम बढ़ाए बस इतनी सी थी हमरी इश्के - दास्तां मैंने कब कहा कि तुम बेवफ़ा हो बस परिस्थितियां बनी हमारी पैरों की बेड़ियां मै देखता रहा तेरा आसरा,तुम देखती रही मेरा आसरा तुमने भी सिर्फ आंखों से इजहार कर मुझे घायल किया मैंने भी सिर्फ नज़रों से बयां कर खुद को तसल्ली दिया। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 19/5/2020

आग को मत कुरेदिये

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   *राख को मत कुरेदिये* राख को मत कुरेदिए जज़्बात सुलग जाएंगे कहते हैं मोहब्बत की चिंगारियां बुझती नहीं समय के साथ राख़ बन अंदर ही अंदर सुलगती रहती हैं श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 19/5/2020

ख्वाब, जिंदगी की डांट, किस्मत

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   *ख्वाब की परवरिश* अपने ख्वाब की परवरिश करो आज जमाना बहुत खराब है ख्वाबों पे भी पहरे लगाती है इसलिए ख्वाबों को पनाह दो दिल के सात दरवाजों के भीतर । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 18/5/2020  *लिखते हैं मिटाते हैं* लिखते हैं मिटाते हैं किस्मत के पन्नों पर कई सपने बुनते हैं और धागों में उलझते हैं कुछ ख्वाबों कि हकीकत बनाने में कुछ मंजिलों को मिटाते हैं हम अक्सर यूं भाग्य के क्रूर फैसलों पे हंसते हैं हम आजकल। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 18/5/2020        *जिंदगी की डांट* जिंदगी की डांट खा के अब संभल गए हैं हम पथरीली पगडंडियां भी अब मंजिलें दिखाती हैं दोस्तों की पहचान जिंदगी ने यूं कराई कि दुश्मन भी उलझने से पहले डरते हैं आजकल। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 18/5/2020  

कब तक

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          *कब तक" और कब तक तुम हाथ छोड़ जाओगे और मै यूंही उंगलियां पकड़ पीछे आऊंगी मन को दिलासा देती रहती हूं तेरे इंतज़ार में और तुम बहाने बनाते हो जिम्मेवारियों का। और कब तक चलेगी ये तन्हाइयों का आलम तुम बेखुद-ए-बादशाह, और तुम मेरी दुआ माना कि तुम बहुत मशरूफ हो जमानें में पर मैं तो पलकें बिछाए बैठी हूं तेरी राहों में। मेरी उंगलियों को छुड़ा जैसे गए थे तुम आकर देखो आज भी खड़ी हूं उन्ही राहों में तेरे वादों को थामें नज़रें जमाए तेरी राहों पे और कब तक इंतजार करूं ये मेरे बादशाह आकर फिर से साथ चलो ये मेरे खुदा। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 17/5/2020

मालूम नहीं था

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           *मालूम नहीं था* मालूम नहीं था कि तुम यूं मिलोगी एक दिन नज़रें मिलते ही इश्क हो जाएगा तुमसे वो सुर्ख गुलाबी तेरे अक्स आज भी छेड़ते हैं उसपे तेरी वो चुपके से नज़रे मिला झुकाना आज भी चेहरे पे मुस्कान ले आते हैं मेरे । मालूम नहीं था कि ये दिन भी आएगा तुम हमे यूं इश्क के समंदर में छोड़ जाओगे मेरे इश्क के कब्र पे हसीन दुनिया बसाओगे अब इस घायल आशिक़ की यही है दुआ तुम खुश रहो अपने जन्नते जहां में। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 17/5/2020

अनहोनी रोके कौन

अनहोनी को रोके कौन आज फिर से चीत्कार कर उठी मानवता उनका था क्या कसूर जिनकी छीनी इहलिला वो आंखों में आशा लिए,तय किए थे मिलों का सफ़र पैरों में छाले, होठों पे अपनो से मिलने की मुस्कराहट इस क्रूर नियति की नीयत ना पहचान पाए किस्मत से लड़ कर भी गए जीवन हार फिर भी इस अनहोनी को ना रोक पाए। आज उनकी आत्मा भी देख ये कराहती होगी इस क्रूरता से कांपती होगी सहम कर यूं और कहती होगी इस अनहोनी को रोके कौन। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 16/5/2020

उदास ना होना

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कभी उदास ना होना तुम कभी उदास ना होना जीवन की पथरीली राहों की उम्र है थोड़ी कोई साथ हो या ना हो मै हूं हरपल साथ तेरे पलके बंद कर दिल में मेरी अक्स देख लेना। तुम कभी उदास ना होना इन राहों में तो मिलेंगे राहगीर कितने हर किसी को शक़ भरी निगाहों से ना देखना सभी कातिल ही नहीं, मसीहा भी है राहों में। तुम कभी उदास ना होना ये मुफ्लिसों का दौर भी गुजर जाएगा ये बात और है कि तुम पारखी बन जाओगे चेहरे पे लगे मुखौटे को देख शख्स पहचान जाओगे। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 16/5/2020

शायद यही मंजूर

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    *शायद यही मंजूर था* आज भी तेरी याद तड़पाती है इस कदर वो हल्का गुलाबी सा उड़ती तेरी चूनर गुस्से भरी आंखों की वो प्यार भरी नज़र पर हमारा बिछड़ना ही लिखा था शायद ईश्वर को शायद यही मंजूर था । वो आखरी पल जब हम मिले थे यूं जैसे दो अजनबी मिल रहे हो एक होकर तुम जाते जाते भी शिकायत दर्ज कर गए थे उन बड़ी बड़ी आंखों से मुझे घुरकर और मै खुद को तसल्ली दे रहा था किस्मत को शायद यही मंजूर था। आज भी खैरियत ले लेता हूं खैरख्वाह बनकर, तू ही बेखबर है मेरी मेरी इश्के-मोहब्बत से या जानकर भी अनजान बन जाती हो इस बात से अनजान हूं आज भी ये बेकदर फिर सोचता हूं तुम्हे शायद यही मंजूर था। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 15/5/2020

चलो मेरे साथ

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        *चलो मेरे साथ* चलो मेरे साथ कहते थे तुम बड़े गर्व से आज राहें बदल गई तेरी मंजिलों के जो याद थे आज जिंदगी बन गए और जो जिंदगी थे यादों में भी ना रहे। आंखे भी अब पथरा गई अब तेरी बाट जोहते कल्पनाओं का समंदर भी अब सूखने लगा है आस की मंजिलें भी अब बदलने लगी हैं आ जाओ फिर से एक बार सब छोड़ कर फिर से कहो एक बार मुझसे,चलो मेरे साथ। एक बार फिर से समेट लो मुझे तुम अपने हाथो में मेरे लरजते हाथों को थाम लो मेरी कांपती हथेलियों को एक गर्माहट दे दो फिर एक बार कहो चलो मेरे साथ । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 15/5/2020

वक्त के साथ, जीना

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                  *वक्त के साथ* वक्त के साथ ये दौर भी गुजर जाएगा, अपने आंचल से ढंक लो अरमानों को, दुनिया ज़ख्म पे नमक छिड़कती है आजकल। वक्त के साथ बदलते देखे हैं सभी को, दोस्तों को भी खंजर लिए देखे हैं कभी, अपने बेगाने हो जाते हैं वक्त के बदलते दौर में वक्त शीर्ष को अर्श बनता है जब । वक्त के साथ बदलते देखे हैं चेहरे कई, एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग, उदासियां का घूंघट ना ओढ़ तू ये मन, एक दिन ये वक्त भी बदल जाएगा, छटेंगे दुखों के बादल,सुख का सूरज भी निकलेगा । क्यूंकी हमने भी वक्त से सबक सीख लिया, वक़्त के साथ हमने उड़ना सीख लिया, बेरहम दुनिया से लड़ना सीख लिया है, वक्त के साथ शन से जीना सीख लिया है । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 15/5/2020 Read my thoughts on @YourQuoteApp #yourquote #quote #stories #qotd #quoteoftheday #wordporn #quotestagram #wordswag #wordsofwisdom #inspirationalquotes #writeaway #thoughts #poetry #instawriters #writersofinstagram #writersofig #writersofindia #igwriters #igwritersclub

वहम, दोस्ती

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*वहम था मेरा* वहम था मेरा तेरी अटूट पाकीज़ा दोस्ती का, गुमान हो गया था अपनी खुशकिस्मती का, हवा के झोंके ने उजाड़ डाला विश्वास हमारा तिनके सा उड़ गया दोस्ती का रिश्ता हमारा । छोटा सा दोस्ती का आशियाना था हमारा, बड़ा नाज़ था हमे तेरे दोस्ती के रिश्ते पे हर रिश्ते से ऊपर था तेरा दोस्ताना हमारा मेरा सब कुछ थे तुम,पर तुम तो रिश्ते निभाने लगे, वहम पाला था मैंने मतलबपरस्त दुनिया में, एक दिन तो बिखरना ही था। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 14/5/2020

जिंदगी है आपसे

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जिंदगी है आपसे मेरी तो जिंदगी है आपसे आप से शुरू आप पे ही ख़तम दुनिया हमारी मौत भी जब आएगी एक पल ठिठक मुस्कराएगी क्यूंकि जाने की इज्जाजत की दरकार होगी आपकी, ये दिल-ए-बादशाह लफ्जों में क्या बयान करूं, कि आपकी मेरी जिंदगी में रुआब्दारी है कितनी, कहते है लोग दो जिस्म एक जान है हमारी । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 14/5/2020