दिल के गहरे राज़
"दिल के गहरे राज़ दिल के एक कोने से अदृश्य पन्ने सा झांकता है कोई छुपाता हूं ज़माने से,पर उसका अक्स चेहरे पे झलक जाता है बात पुरानी है सभी के लिए,पर मेरी जिंदगानी है कुछ न होते हुए भी सबकुछ थे वो मेरे लिए। दबी जुबां में दोस्त भी मख़ौल उड़ाते थे,मुस्करा के हल्के-हल्के पर उनका कातिलाना नज़र हवा दे जाता मेरे सुप्त जज्बातों को। अगर प्यार न था उनको मुझसे तो,शिकायतें क्यों करती थी नज़रें अगर इकरार ना था तो,बेपरवाही का नाकाम कोशिश क्यों करते थे। ये हुस्न-ए-जहां जाते जाते आज़ाद तो कर जाते अपनी मुहब्बत से अपने दिल के गहरे राज़ छुपाऊं-बताऊं किस-किस से । तेरा नाम जो ले लिया तो मुफ्त में मेरा इश्क़ बदनाम हो जाएगा इसलिए तन्हाइयों के गोद में सो ,याद कर लेता हूँ तुझे और दिल के अरमानों को सबसे छुपा, आँसुओं के लड़ी में पिरोता हूं कभी तो मिलोगी,दूर कर लेंगे सारे शिक़वे-गीले तुझसे। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 20/9/2020