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Showing posts from September, 2020

दिल के गहरे राज़

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            "दिल के गहरे राज़ दिल के एक कोने से अदृश्य पन्ने सा  झांकता है कोई छुपाता हूं ज़माने से,पर उसका अक्स चेहरे पे झलक जाता है बात पुरानी है सभी के लिए,पर मेरी जिंदगानी है कुछ न होते हुए भी सबकुछ थे वो मेरे लिए। दबी जुबां में दोस्त भी मख़ौल उड़ाते थे,मुस्करा के हल्के-हल्के पर उनका कातिलाना नज़र हवा दे जाता मेरे सुप्त जज्बातों को। अगर प्यार न था उनको मुझसे तो,शिकायतें क्यों करती थी नज़रें अगर इकरार ना था तो,बेपरवाही का नाकाम कोशिश क्यों करते थे। ये हुस्न-ए-जहां जाते जाते आज़ाद तो कर जाते अपनी मुहब्बत से अपने दिल के गहरे राज़ छुपाऊं-बताऊं किस-किस से । तेरा नाम जो ले लिया तो मुफ्त में मेरा इश्क़ बदनाम हो जाएगा इसलिए तन्हाइयों के गोद में सो ,याद कर लेता हूँ तुझे और दिल के अरमानों को सबसे छुपा, आँसुओं के लड़ी में पिरोता हूं कभी तो मिलोगी,दूर कर लेंगे सारे शिक़वे-गीले तुझसे। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 20/9/2020

कुछ खुशियों के पल

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नमस्कार🙏 जोहार🙏 खम्माघण्णी सा 🙏 बहुत दिनो बाद जब दोस्त एक दूसरे से मिलते हैं। तो उनके मनोभावों को चित्रित करने का प्रयास की हूं।आशा हक्क असपलोगों को पसंद आएगी। कुछ खुशियों के पल" आओ बिता लें कुछ खुशियों के पल एकदूजे के संग कुछ हम कहें,कुछ तुम कहो,यादों को रंगीन आसमां दे दूं लाल सुर्ख रंग ये,अहसास है एकदूजे के प्यार का, विश्वास का बहुत हुई दुनियादारी,रिश्तेदारी, बस अब दोस्ती के रिश्ते निभा लूं । आओ बिता लें कुछ खुशियों के पल एकदूजे के संग आसमान भी आज कर रहा चित्रकारी, मनोभावों के उत्साह का कंधे पे एक दूजे के हाथ रख, साथ निभाने का वादा तो कर लूं दिल की खुशियों से चेहरे हो रहे गुलाबी,धूप का तो बहाना है फिर न जाने वक़्त ले कौन सा करवट,वक़्त को आज हथेलियों में भर लूं । आओ बिता लें कुछ खुशियों के पल एकदूजे के संग बहुत दिनों से हमारी गुफ़्तगू भी थी झीने ओढ़नी लपेटे शर्माती सी आज खुलकर कहकहों से खुशियों के संसार सजा लूं । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 19/9/2020

जन्मदिन की बधाई मोदी जी

 आज हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी जी का जन्मदिवस है ।उस पर मैं थोड़े शब्दों में बधाई देने का प्रयास की हूं।जो आज बजट के हर देशप्रेमी जनता की भावना है ।🙏 "भारत मां के भाल पे ,आज ही के दिन चमका एक सितारा है संघर्षों को साथी बना,देश प्रेम के लिए बना चौकीदार हमारा है सिद्धार्थ को आदर्श बना,देश प्रेम के लिए त्यागा घर-बार है, पूरे संसार मे भारत मैत्री का ध्वज शान से लहराता है, सभी देशों में भारत माता का नारा,और नमस्कार का संस्कार सिखाता है। ना कोई इसका बैरी,पर जब दुश्मन आंखे तरेरे तो घर मे घुस सबक सिखाता है, अमित-राजनाथ इसके दो हाथें,हर परिस्थिति का हल ढूंढ लेते, चीन-पाकिस्तान सा आतंकी भी,आतंक से पहले सौ-सौ बार घबराते । निंदा से ना घबराता,सिर्फ देश-प्रेम में डूबा रहता योगी का साथ पा,श्री राम को अयोध्या में विराजमान किया, कश्मीर के आतंक को थराया ,धारा 370 को हटा जनता को हर्षाया, तीन तलाक को हटा,सहमी महिलाओं को सम्मान दिया, आरक्षण की राजनीति को भी झटका देने की शुरुआत की । बेटियां होती लक्ष्मी,इसके अहसास को जगाने के लिए कई योजनाएं चलाई, किसानों के लिए भी योजनाएं चला लाल बहा

हिंदी भारत माता की लाडली

 नमस्कार,जोहार, खम्मागन्नी सा🙏 आज हिंदी दिवस के अवसर पे मैं ये रचना प्रस्तुत कर रही हूं।और आशा करती हूं कि आपसबों को भी पसंद आएगी।इसमें मैने थोड़े आक्रोश और सम्मान की बात सम्मिलित रूप से रेखांकित करने का प्रयास की हूं। "हिन्दी भारत माता की लाडली" 14 सितम्बर क्या आया चहुंओर अचानक से शोर बढ़ी हिंदी दिवस-हिंदी दिवस बस एक दिन की मुख्य अतिथि की तरह हो रहा सत्कार बाकी दिनों तो अंग्रेजी का है बोलबाला हरओर सभ्य गिने जानेवाले समाज भी अंग्रेजी में गपियाते हिंदी को हेय दृष्टि से देख पास भी न फटकाते शान समझते बेझिझक अंग्रेजी में बकबकाना हिंदी भाषी को अछूतों के समूह में रख, मुंह हैं बिचकाते। पर हम हिंदुस्तानियों की हिंदी ही है पहचान क्या हुआ जो देर लग रही बहुचर्चित होने में जब भी जय हिंद बोलेंगे, हिंदी का बढ़ेगा मान हम हर रिश्तों को अलग-अलग नामो से हैं पुकारते क्योंकि हर रिश्ते की अपनी मर्यादा,अपना है सम्मान मां में है ममता का सागर तो पिता में है प्यार उमड़ता अंग्रेजी तो रिश्तों की मर्यादा ही खो देती एक ही शब्द के कितने अर्थ-अनर्थ है बनाती नमन लाल बहादुर शास्त्री जी को,जो इसकी अस्मिता की लड़े

किसान

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आज मै किसानों के ऊपर एक प्रतियोगिता के तहत कविता लिख रही हूं।और आशा करती हूं कि ,कम शब्दों में किसान का चित्रण करने में मैं सफल रही हूं🙏जोहार, नमस्कार,खम्मागन्नी सा🙏 *किसान* ठिठुरती ठंढ, कड़कती धूप,गरजती बारिश जब हम अपनों के संग देहरी भीतर प्रफुल्लित होते तब किसान कंधों पे हल ले जोड़े बैलों को पुचकारता इंद्र देव को मनाता, धरती से करता प्रार्थना,बीजों करता जोड़-घटाव चल पड़ता कर्मयोगी, हर विपदा से लड़ने को तैयार बिना विश्राम करते निरन्तर काम,जाने किस मिट्टी के बने हमारे उदर को भरने वाले खुद भूखा महंगाई की मार में सो जाते कभी अकाल,कभी टिड्डी,कभी खर-पतवार की भेंट चढ़ती मेहनत फिर भी उफ ना करते,धरती माँ से प्रेम जो इतना करते कभी-कभी बच्चों के दुःख से विचलित हो फांसी के फंदे को अपनाते बस अब बस हो,देश की इन जवानों के दुखों का अंत हो ये हमारा संकल्प हो,अब अन्नदाता का धरा पे मान होना चाहिए श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 10/9/2020

जिउतिया पर्व

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 जिउतिया पर्व जिउतिया पर्व आश्विन माह में कृष्ण-पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन द‍िनों तक मनाया जाता है। यह पर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है। इसके अलावा नेपाल के मिथिला और थरुहट में भी मनाया जाता है।इस पर्व में माताएं अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत करती है। 👉वैसे ये अब लगभग भारत के सभी क्षेत्रों में अलग-अलग नाम से प्रचलित है।और सन्तान की दीर्घायु और उज्ज्वल भविष्य की कामना हेतु मनाई जाती है। इस पर्व में पहले दिन अलग अलग राज्यों में अलग अलग विधि से लोग शुरुआत करते हैं।कहीं पहले दिन के शाम से नहा कर शुद्ध भोजन कर शुरुआत करती हैं,तो कहीं माताएं एक समय भोजन करती हैं।वहीं हमारे झारखण्ड के पलामू में इसकी शुरुआत पहले दिन के सूर्योदय से ही शुरुआत हो जाती है।माताएं सुबह उठ कर सबसे पहले दतवन-पानी चिल्हनी-सियारनी माता को देकर खुद दतवन करती हैं।उसके बाद नाश्ता के समय खीरा, मिठाई,फल, हलवा शुद्ध घी में बना कर पहले चिल्हनी-सियारनी माता को अर्पण कर के फर खुद ग्रहण करती हैं।उसके बाद चावल-बराई का दाल, पांच तरह की सब्जी,कन्दा का चोखा भोग ल

हुक़ूक़-अधिकार

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 हुक़ूक़ - अधिकार तेरे जाने के बाद भी मेरे दिल-ए-चमन में तेरा ही हुक़ूक़ है लाख चाहा तेरी यादों को भुलाना,पर धड़कनों को कोई कैसे भुलाए हम मिले भी थे और नहीं भी मिले,हकीकतों की दुनिया में बस नज़रें मिली हमारी,और मेरी जिंदगी तेरे नाम हो गयी हमारा प्यार शब्दों का मोहताज़ ना था,बस अहसासों का साथ था तू भी जानती थी,मैं सिर्फ तेरा हूं, तो दिल मे किसी और को क्यों बसाया जमाने की रीती-रिवायतें में आज हम अलग राह के राही हैं मेरा दिल तेरे लिए ही धड़कता है,ये और बात है कि हमसफ़र कोई और है पर शुरुआत भी तो तूने ही कि थी, कितना दिल रोया था उस दिन फुट-फुटकर नफ़रत सी हो गयी थी,उन दरों-दीवारों से,उन गलियों,उस शहर से जहाँ तूने मेरे दामन को ठोकरों में रख,ताज पहनाया था किसी और को तूने ठुकराया मुझे,पर आज भी मेरी धड़कनों में तेरा ही बसेरा है । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 8/9/2020