एक बार आजा
*एक बार आजा* संतप्त ह्रदय तेरे विरह वेदना में जल रहा चंचल नयन तेरे इंतज़ार में सुप्त हो रहा तुम निर्मोही इस कदर रूठे कि मनाने की सारे रास्ते बंद कर गए लोग कहते हैं ना देखूं तेरा रास्ता तुम अनजाने रास्तों में खो गए पर मेरे ह्रदय को कैसे समझाऊं,जो हर पल धड़कता तेरे आने की आस लिए दुनिया मे कई चमत्कार हैं होते एक चमत्कार होता और हम-तुम साथ होते सपनो के पंख लगा ढूंढती हूं हरजगह पर जाने तुम किस ओट में हो छुपे हुए एक बार आजा मुस्कराते हुए छुपा लुंगी,सबकी नजरों से बचाते हुए श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 22/3/23