शिव:सृजनहार व विध्वंसकार"*
*"शिव:सृजनहार व विध्वंसकार"* शिव इस सृष्टि के अधिकर्ता है। वे संहारक हैं और सृजनहार भी। संपूर्ण ब्रह्मांड के चराचर में शिव तत्व व्याप्त है।और यह माना जाता है कि ब्रह्मांड ऊं की ध्वनि में लीन है। भगवान रुद्र ही सभी लोगों को अपनी शक्ति से संचालित करते हैं। वही सब के भीतर अंतर्यामी रूप से भी स्थित हैं। शिवलिंग के तीन हिस्से होते हैं. पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है। मध्य भाग में आठों ओर एक समान सतह बनी होती है।अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी पूजा की जाती है। इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है। शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं-- पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग। ये तीन भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) का प्रतीक हैं।शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए एक मार्ग से निकल जाता है।शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंड) और एक बिंदू होता है, ये रेखाएं शिवलिंग पर समान रूप से अंकित होती हैं। सभी शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग के