"अबला नहीं अब नारी"
"अबला नहीं अब नारी" मैथलीशरण गुप्त जी की यह कविता- "अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में दूध, आँखों में पानी।" बहुत सरे मायने में अब भी सटीक बैठती है।पर अब जरुरत है बदलाव की, क्योंकि समाज भी अब आगे आने लगा है आधी आबादी के साथ।और मै कहती हूँ- अब अबला नहीं है नारी , ना ही है दया की पात्र, ना ही है पुरूषो की छाया मात्र, न ही है अब किसी पर आश्रित। सक्षम है, शिक्षित है अब आधी आबादी, समाज को है अब उनपे पूरा विश्वाश, हर क्षेत्र में चल रही समाज के साथ, रावण बने नर अब तुम भय खाओ, क्योंकि समाज कृष्न बन दे रहा साथ। भरी सभा में अब न लूटेगी मर्यादा , न होगा सीताहरण, क्योंकि समाज कृष्ण बन दे रहा साथ, अब नहीं है नारी अबला, ना उपेक्षा की पात्र, जग रही नारी शक्ति, जग रहा समाज। ..........📝श्रीमती मुक्ता सिंह