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Showing posts from April, 2020

नज़रे इनायत

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"नज़रे इनायत" सांवरे कभी मुड के भी देखा करो, राहों में हम बैठे हैं पलके बिछाए , तेरे प्यार भरी नज़रे इनायत के इंतज़ार में। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 29/4/2020

पास होकर भी दूरी है

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"पास होकर भी दूरी है" ये कैसी मजबूरी है, पास होकर भी दूरी है, ये कैसा बेरूखियों का सैलाब आया है, मै तेरी ख्यालों में सपने सजा रही हूं, और तुम ना जाने किन यादों में गुम हो, दर्द होता है तेरी बेरुखियों को देखकर, तुम मुस्कराते हो मेरे दर्दे गमों को देखकर। कैसा तेरा सितम है, पास होकर भी दूरी है, दिल की चाहतों की ये कैसी मजबूरी है, वो इश्क में नफरतों के कांटे बिखेरते हैं, और हम अश्कों से कांटों को चुन लेते हैं, सजदे करते हैं तेरी बेवफ़ाई की भी, राहों में कांटे चुन इश्क के फूल बिछाते हैं। कैसा ये तेरा प्यार है,पास होकर भी दूरी है, मेरे एहशाशों के रात की सहर भी होगी, तुम होगे दुनिया होगी, पर मै ना होऊंगी, ना करूंगी अब रंजो - गम, शिकवे - गिले, तेरी बेरुखी ने जख्मों को नासूर बना दिया, बस तेरी मुहब्बत ही तो मांगा था मैंने, तूने मुहब्बत में बेरुखी का इनाम दे दिया। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 26/4/2020

खुद को फ़ना कर दिया

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"खुद को फ़ना कर दिया" क्या खूब कहा है किसी ने "किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता।" तेरी खुशी के लिए खुद को फ़ना कर दिया, तुम्हे चाहा इतना कि तुझे खुदा बना दिया, प्रेम की डगर पे मिला तन्हाइयों का तोहफा, टूटा दिल मेरा येसा तेरी बातों से ये बेखबर, जैसे ख्वाबों की मोती बिखरे हो दर बदर, साथ चलते हो एक नदी के किनारे की तरह चलते तो साथ हो पर मिलते नहीं । तेरी चाहतों में खुद को फ़ना कर दिया, तेरी ख़ुशी पे खुद को तुझसे जुदा कर दिया, तुम सच ही कहते हो तेरे लिए पागल हूं मैं, बहुत समझाया दिल को पर ये तो पागल है, तुम्हे मेरा साथ एकपल भी गवारा नहीं, फिर फर्ज क्यूं निभाते हो रिश्तों के बंधनों में, जा ये दिल के परिंदे तुझे आजाद करती हूं। तेरी चाहतों में खुद को फ़ना कर दिया, एक दिन तुम भी गुजरोगे उस रहगुजर से, मेरी जगह कल तेरा भी वो ठिकाना होगा, बस मै नहीं होऊंगी, बाकी सारा जहां होगा, मैंने तो अब तेरे दर्द से भी इबादत कर लिया, मैंने तो तेरी बंदगी को खुदा बना लिया है, तू साथ निभाए या ना निभाए बंधन नहीं, धीरे से ये दिल को

जन्म दिन की बधाई

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"जन्म दिन की बधाई" यह बेखुदी भरी लबों पे हंसी, ये खुशियों भरा आलम, फूलों सी जिंदगी की महक, प्यार से भरा रहे हरदम, तुम्हे हो बधाई ये तुम्हारी खुशियां, ये अनमोल लम्हे भरा जन्मदिन, जन्मदिन की हार्दिक बधाई । श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 20/4/2020

दर्द के सबब

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*दर्द के सबब* जो हमदर्द थे आज दर्द के सबब बन गए आवाज भी ना हुई और हम कत्ल हो गए जब तूने चाहा ,जैसे चाहा आजमाया हमे तेरी हर कसौटियों पे हम खरे उतरते रहे। जो हमदर्द थे आज दर्द के सबब बन गए, तेरी राहों के कांटे चुन,फूल बन बिखरते रहे, जो थी तेरी खुशियां, उन पे हम बिखरते रहे, तेरी मंजिलें बदलीं, ख्वाहिशें बदलीं, तुम जहां छोड़ गए थे हम वहीं हैं खड़े । जो हमदर्द थे आज दर्द के सबब बन गए, तेरी आंखें करती हैं आज इंतज़ार किसी का, पर हम तो इंतज़ार आज भी करते है तेरा, तेरा ठिकाना बदला, जरूरतें बदली, पर मेरी मजिलें तो आज भी है ठिकाना तेरा। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 11/4/2020

कुछ यूंही बैठे बैठे

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"कुछ यूंही बैठे बैठे" कुछ यूंही बैठे बैठे देखा अक्स अपना, फुर्सत के पलों की दास्तां है ये क्या, या है चिंता की लकीरों की निशानियां, जैसे ढूंढ रही थी अपने अक्स में कुछ, जानी - पहचानी सी छवि अपनी। आंखों में दिखी वहीं आशाओं की चमक, चेहरे पे थी आत्मविश्वास की दमक, होंठों पे एक भोली सी मुस्कान खिली थी, मैं जैसे अपनों के प्यार से दमक रही थी । तभी मम्मी की आवाज ने जैसे तंद्रा तोड़ा, रात का खाने का समय हो चला था , मै हौले से मुस्कराई, ये कहां खो गई थी मै, कुछ यूंही बैठे बैठे देखा अक्स अपना । श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 7/4/2020

दीप आशा की

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"दीप आशा की" मां भारती, मां भारती, मां भारती, देखो चहुं ओर फैली है निराशा की निशा, आज देखो इस विपदा की घड़ी में, जब चारों ओर घनघोर  निराशा की निशा, दे शक्ति मां हम एक हो और नेक हो, इस निशा में जलाएं हम एक दीप आशा की । श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 5/4/2020 शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा । शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

एक दीप जलाएं

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 "एक दीप जलाएं" आओ मिलकर हम एक दीप जलाएं, अखंडता में एकता की मिसाल बनाएं, आशाओं का दीपमाला सजाएं, उम्मीदों की एक दीप जलाएं। आओ मिलकर हम एक दीप जलाएं, छा रहा है चहुं ओर निराशा का तम, छूट रही है आशाओं का दामन, ऎसे में हम फिर से उम्मीद जगाएं, संकल्प का हम एक दीप जलाएं। आओ मिलकर हम एक दीप जलाएं, आशा और विश्वास का एक दीप जलाएं, अनेकता में एकता का एक दीप जलाएं, उदासी में भी हम उत्सव मनाएं, आओ हम हिम्मत की एक दीप जलाएं। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 5/4/2020 शुभं करोति कल्याणमारोग्यं धनसंपदा । शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥

उठाओ धनुष करो संधान

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"उठाओ धनुष करो संधान" हे राम हे राम हे रघुनंदन हे श्री राम अवतरित हो फिर से है श्री राम धनुष ले हाथों में करो संधन जग में बढ़ रही विपदा भारी छूटे कुल मर्यादा, झुकी है धर्म पताका। अवतरित हो फिर से हे श्री राम , फिर से उठाओ धनुष और बान, पुकार रही तुझे ये दुखी वसुंधरा, करो संहार दुनिया से सभी विकार का, करो फिर से पावन अपनी वसुंधरा, उठाओ धनुष करो संधान। हे राम हे राम हे रघुनंदन हे श्री राम अवतरित हो फिर से हे श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम की धरती खो गई है कहीं, अमर्यादा की है चहुं दिशा बोलबाला, वसुंधरा हो रही लहूलुहान । हे राम हे राम हे रघुनंदन हे श्री राम, अवतरित हो फिर से हे श्री राम, उठाओ धनुष करो संधान। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 4/4/2020