"पास होकर भी दूरी है" ये कैसी मजबूरी है, पास होकर भी दूरी है, ये कैसा बेरूखियों का सैलाब आया है, मै तेरी ख्यालों में सपने सजा रही हूं, और तुम ना जाने किन यादों में गुम हो, दर्द होता है तेरी बेरुखियों को देखकर, तुम मुस्कराते हो मेरे दर्दे गमों को देखकर। कैसा तेरा सितम है, पास होकर भी दूरी है, दिल की चाहतों की ये कैसी मजबूरी है, वो इश्क में नफरतों के कांटे बिखेरते हैं, और हम अश्कों से कांटों को चुन लेते हैं, सजदे करते हैं तेरी बेवफ़ाई की भी, राहों में कांटे चुन इश्क के फूल बिछाते हैं। कैसा ये तेरा प्यार है,पास होकर भी दूरी है, मेरे एहशाशों के रात की सहर भी होगी, तुम होगे दुनिया होगी, पर मै ना होऊंगी, ना करूंगी अब रंजो - गम, शिकवे - गिले, तेरी बेरुखी ने जख्मों को नासूर बना दिया, बस तेरी मुहब्बत ही तो मांगा था मैंने, तूने मुहब्बत में बेरुखी का इनाम दे दिया। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 26/4/2020