आज मैंने देखा एक आत्मविश्वास
*आज मैंने देखा एक आत्मविश्वास* वो ठेले को ठेलती जिंदगी अद्ध ठेली, माथे पे सिकन और चेहरे पे विश्वास, आज देखा मैंने एक आत्मविश्वास । दुनिया से बेखबर, माथे पे चिंता की लकीरें, थी उस चिंता अपनी मेहनत की कमाई की, नज़र व्यापार पे और आंखो में सपने, आज मैंने देखा एक आत्मविश्वास । वो ठेला नहीं था ,थी उसकी थाती, बच्चों के सपने स्वाभिमान की महक, वो ठेले को नहीं सपनों को ठेल रही थी, स्वाभिमान की महक सजी थी उस ठेले पे, आज मैंने देखा एक आत्मविश्वास । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 17/7/19