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Showing posts from April, 2018

"ख्वाहिशों का काश"

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   "ख्वाहिशों का काश" काश एक हसीं अल्फाज है जो, मन में आशा की किरण बन चमकता है , और लगता है की काश ऐसा हो जाता ! ख्वाब हकीकत में बदल जाता, और मुश्किल वक्त लम्हों में गुजर जाता । जिंदगी में ख्वाहिशों की नही है मंज़िल, कुछ पूरे कुछ अधुरे और कुछ खास, ना जाने इनमे कितने है काश शामिल, काश कास के फूलों की तरह हवा में बिखर जाते है, और कुछ आज भी अटके हैं पूरे होने के जिद में । काश ख्वाबों का वह जाल है, जिसमे सपने सुहाने मकड़जाल है, और हकीकत पथरीली पगडण्डी। पर हमें है काश को हकीकत बनाना, सपनो को साकार कर धरातल पर उतारना, पुरे होने की आश में काश को मंजिल दिलाना, क्योंकि साँस थम जाती है एक आस टूट जाने से, क्योंकि ख्वाहिशों की नहीं है कोई मंजिल,  और ख्वाहिशों का काश का आस गहरा होता है ।                       ............📝 श्रीमती मुक्ता सिंह

"लफ़्ज"

    "लफ़्ज" लफ़्ज वो समंदर है, जिसकी न कोई सीमा है, ना गहराई का अंदाज है । लफ्ज़ो के तीर से हुए महाभारत, लफ्ज़ो के मायाजाल में हुआ राम वनवास, लफ़्ज़ों के अल्फाजों में घिरा सारा संसार, क्योंकि लफ्ज़ो के समंदर का न है कोई किनारा । जबां खामोश हो तो नजर को लफ़्ज दीजिये, क्योंकि अक्सर लोग जबां नहीं नज़र पढ़ते हैं, और लफ्जों के खामोशियों में वो असर होते हैं, कि जब करवटे बदलते हैं तो क़हर बरसाते हैं, इसीलिए लफ़्ज़ों को संभाल कर अल्फाज बनाइये। क्योंकि जब लफ़्ज अल्फ़ाज बन जाते हैं तो, तरकस से निकले बाण बन जाते हैं, जो लाख चाहने पे भी वापिस नहीं होते हैं।                                   ...........📝श्रीमती मुक्ता सिंह

उनकी आँखें

     "उनकी आँखें" शब्द मौन हैं तो क्या उनकी आँखे बोलती हैं पढ़ने वाला नज़र चाहिए । प्यार करने के भी अलग अलग सलीके हैं, आँखों में नमी हो तो, गम हो जरुरी नहीं, खुशियों में भी सैलाब बहा करते हैं । आँखों-आँखों से बात व् मुलाकात तो हो जाती है, लेकिन बड़ा मुश्किल होता है वह पल, जब किसी की ख़ामोशी सवाल कर जाती है। उनकी आँखों के अंदाज़ बड़े ही गहरे हैं, उन दिलकश आँखों के ख्वाब बड़े गहरे हैं, छुप-छुप के न जाने क्या देखते हैं, जैसे कोई खज़ाना छुपाने की हो कोशिश, और नज़रे झुकाये मुस्कराते रहते हैं । उनकी आँखों की तारीफ़ है बमुश्किल, झील सी आँखों में समंदर छिपाये बैठे हैं, चेहरे पे मुस्कराहट, आँखों में तूफान हो जैसे, लोगों में खुशियों के तोहफे लुटाए बैठे हैं , उनकी आँखों की तारीफ़ में क्या कहूँ, उसके लिए शायरों के लफ्ज कम पड़ जाते हैं। रात की गहराइयों और मेरी तन्हाइयों में, उनकी आँखों के वो समंदर याद आते हैं, और उनकी मजबूरी और कमी याद कर, हलके-हलके पलकों से ढल जाती हैं ।                      📝श्रीमती मुक्ता सिंह