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Showing posts from January, 2018

उम्मीदें

                       "उम्मीदें" एक ख़ुशनुमा सा फ़लसफ़ा है लफ़्ज़ 'उमीदें', बड़ा सुकून है इस हसीं लफ़्ज़ 'उम्मीदें' में, एक सम्बल सा देती है जिंदगी में में ये लफ़्ज़, एक अनदेखी सी दुनिया में ये ले जाती है ये लफ़्ज़ । इस लफ़्ज़ का दायरा है बड़ा और हसीं, मानो जागती आँखों से देख रहे हों दुनिया नयी,  लोग कहते हैं की उम्मीदों पे ही दुनिया है टिकी, जहाँ उम्मीद न हो वहां सफलता है नहीं । पर इस लफ्ज 'उम्मीद' का दूसरा भी है पहलू, क्योंकि जब उम्मीदें ज्यादा बढ़ती हैं , तकलीफें भी वहीँ दरवाजा खटखटाती है, सपनो का टूटने का दर्द दीखता नहीं है, उसका चुभन जिंदगी भर के घाव दे जाता है, जिंदगी बीत जाती है इस चुभन से उबरने में।           ....................📝श्रीमती मुक्ता सिंह

वक़्त

  "वक़्त" वक़्त समय का पहिया है,जो गुजर जाता है, वक्त किसी की जागीर नहीं,वो गुजर जाता है, अच्छा हो या बुरा,हरवक्त वक़्त गुजर जाता है। क्योंकि जो गुजर गया वो वक़्त है, जो ठहर गया वो लम्हा है यादों का, अच्छे-बुरे वक़्त गुजर जाते हैं परछाइयाँ छोड़े, बुरे वक्त में ही दोस्तों की होती है पहचान, अच्छे वक़्त में तो सभी होते हैं अपने । हौसलों की भी आजमाइश करती है वक़्त, कि कितने गहरे पानी में टिकते है हम, छिछले पानी में तो सभी शेखी बघारते हैं। वक़्त किसी के लिए न रुका है न रुकेगा, उसकी फितरत में है बदल जाना हरपल, पीछे छोड़ जाता है अच्छी-बुरी यादों का खजाना। पर हम वहीँ ठहरे हैं,जहाँ तुम छोड़ गए थे, मौसम बदला, लोग बदले, बदल गया सारा जहां, पर ये वक़्त हम आज भी वही हैं ,जो कल थे, हम वहीँ ठहरे हैं जहाँ तुम छोड़ गए थे, शायद हम लम्हा बन गए हैं यादों का, तुम वक़्त ठहरे जो गुजर गए हरवक़्त की तरह।              .........📝श्रीमती मुक्ता सिंह

इंतज़ार

    "इन्तज़ार" 'इंतज़ार' एक अजीब सी अहशास है इस शब्द में , दर्द और बेचैनी से भरा एक सकून है इस शब्द में, जानते हुए भी की नहीं मिलेगा वह जिंदगी में, फिर भी एक अजीब सा इंतज़ार है जिन्दगी में। किसी न किसी का तो सभी करते हैं इंतजार जहाँ में, वो ख़ुशनसीब हैं, जिनका इंतजार सफल होता है, ख़ुशनसीब वो भी हैं ,जिनके भाग्य में इंतजार हो। जीने की ख्वाहिश में हर रोज़ मरते हैं लोग, वो आये ना आये "इंतज़ार" करते हैं लोग, क्या खूब कहा है किसी ने- "झूठा ही सही मेरे हमदम तेरा वादा, पर आज भी हम उनपर एतबार करते हैं, तू आये या न आये हम आज भी इंतज़ार करते हैं", एक दिन इंतजार में ऐसा भी दिन आएगा, तेरे दिल में इंतज़ार की लकीर छोड़ जायेंगे, ढूंढते फिरोगे तुम भी हमें इंतजार में एक दिन, आँखों में यादों की नमी छोड़ जायेंगे एक दिन, दिल में दर्द की वज़ह छोड़ जायेंगे एक दिन, तुम भी करो इंतज़ार सबब छोड़ जायेंगे एक दिन, जिंदगी में हमदम की कमी छोड़ जायेंगे एक दिन। ....................📝श्रीमती मुक्ता सिंह

मेरी परछाई

   "मेरी परछाई" मै और मेरी परछाई दोनों है एक दूसरे से मिले, सुख-दुःख में साथ निभाती मेरी परछाई, समय के हिसाब से है रूप बदलती, कभी छोटी हो जाती, तो कभी लंबी हो जाती। पर अँधेरे ने इस पर भी है आधिपत्य जमाया, अँधेरे में मेरी परछाई भी, मेरा साथ छोड़ जाती है, और समय की तरह अपना रूप दिखती है, कभी छोटी,कभी बड़ी, कभी साथ छोड़ जाती है । एक दिन बड़े प्यार से साथ बैठी बोली परछाई, मै हूँ तुम्हारी सच्ची हितैसी,हरवक्त साथ निभाती, जब से तुम हो आये पृथ्वी पे ,हरवक्त हूँ साथ तेरे, चाहे सुख हो या दुःख, हरवक्त हूँ साथ तेरे, मै मुस्करा कर बोली झूठ न बोल मेरी हमकदम, अँधेरा आते ही तुम साथ छोड़ जाती हो, समय की तरह अपने रूप बदलती हो, अब मुस्कराने की बारी थी उसकी , एक अदा की तरह मुस्करा कर वो बोली, मेरे रूप बदलने के हैं कई राज ये साथी, पर हर रूप में रहती हूँ मै साथ ही, अंधेरों से भी मै ही लड़ कर साथ आती हूँ तेरे, क्योंकि एक पल भी अस्तित्व नहीं मेरा बिन तेरे, अब सोचने की थी बारी मेरी, सही तो कहा इसने।                                  .............📝श्रीमती मुक्ता सिंह

यादों में

               "यादों में" जब भी आँख बंद करूँ बस तुम ही तुम हो, यादों में भी बसेरा है बस तुम्हारा ही, सज़दे में भी बस नजऱ आता है तेरा चेहरा। तुम से है बस इतनी सी आरज़ू, सजदे में न याद कर मुझको, बस यादों में दे दे बसेरा मुझको। समय की तरह ना रुक मेरे लिए, पर ओस की तरह, कुछ पल दे दे मुझको, अच्छी बात है कि, यादों की जंजीर नहीं तेरे पैरों में, पर दुःख है मुझे, कि यादों के पन्नों में भी नहीं मै। कभी हमख्याल थे हम-तुम, आज ख्यालों से भी है दुश्मनी हमारी, हमारी मंजिलें पूरी होती थी तुमसे मिलकर, आज टेढ़े-मेढ़े पगडंडियों की मंजिले भी नहीं। ये कैसा हवा का झोंका आया है, लगता है जैसे तुम्हारी ख़ुशबू हो फिजाओं में, पर इन हवाओँ की ये साजिशें हों ये जैसे।                 .............📝श्रीमती मुक्ता सिंह

ख़्वाहिशें

    "ख़्वाहिशें" लफ़्ज़ बड़ा सलीके का है 'ख़्वाहिशें', अर्थ बड़ा गहरा है इसका 'ख़्वाहिशें', ख्वाहिशों पे ना तो बनी है सीमारेखा, न ख्वाहिशें पालने को चाहिए इज्ज़ाजत। ख्वाहिशों की न तो कोई मंज़िले हैं, ना ही ख़्वाहिशें पूरी होने का वादा, ये तो देखि जाती हैं अधखुली पलकों से, कभी छोटी तो कभी बड़ी होती हैं ख़्वाहिशें, बस इसके होने का अहशास भर देता है उमंग। माँ-बाप के आँखों का तारा बन्ने की ख्वाहिश, चाहे स्कूल में अव्वल आने की ख़्वाहिश, थोड़े बड़े हुए तो आसमान को छूने की, थोड़े और बड़े हुए तो चाँद-तारे तोड़ लाने की, अनेको ख़्वाहिशों की अनेको हैं मंजिले । पर समय के साथ ख़्वाहिशें बंद हो जाती हैं, समुद्र की लहरों सा उफ़नती रहती हैं अंदर, बहार शीतल सी शांत दिखती हैं ख़्वाहिशें, जैसे कैद हो घर आँगन में,देहरी पे हो पहरेदारी, दुल्हन की घूँघट सी होती हैं ख़्वाहिशे, बाहर से ढंकी और अंदर से उत्सुकता से भरी । ......................📝श्रीमती मुक्ता सिंह

बिंदिया

      "बिंदिया"  सुहागन के माथे की बिंदिया, चुपके से कह जाती है बहुत कुछ, इसके भी है रंग कई निराले से, पर दो नैनों के बिच लाल रंग , चुपके से कह जाती है बहुत कुछ। दो नैनो के बिच सिमा रेखा हो जैसे, दो संस्कृतियों का मिलन गान हो जैसे, हर किसी को सबसे पहले लुभाती है ये, दुल्हन का हर श्रृंगार है अधूरा इसके बिना, बिन बोले कुछ कह जाती है बिंदिया । कभी-कभी रच जाती है चुपके से चिपकी ये, हर किसी के दिल को छेड़ जाती है ये, सुहागन का सोलह श्रृंगार है, इसके बिना अधूरा, पिया के मन को मोह जाती है ये बिंदिया, माथे के शिकन के बिच खुशियों का पैगाम है ये, गोल परिधि सी इसकी व्यास है बड़ी। भारतीय संस्कृति की पहचान है ये बिंदिया, हमारे संस्कारों की जान है बिंदिया, आज युवा अंधी दौड़ में दौड़ रहे हैं, आधुनिकता के नाम पे पहचान खो रहे हैं, आज बस तीज त्योहारों में ही दिखती है ये, आधुनिक वेश के नाम पे संस्कृति खो रहे हम, भूल गए की बिंदी है हर लड़की के मन का दर्पण।             ...............📝श्रीमती मुक्ता सिंह