दिव्यता का सफर
*दिव्यता का सफर* दिए की लॉ में भी न थी इतनी रौशनी जो रौशन कर सके तेरे दर्प को वो भी उधार मांग रही हो जैसे तुझसे दिव्यता प्रकाश की दिव्य आभा लिये दिव्यता के सफर पे चली गयी तुम छोड़ गई अपनी माँ को यादों के अंधेरे में देहरी खड़ी दिल-ही-दिल पुकारती हूं तेरे दिव्यता की रौशनी की झलक ढूंढती हूं काश समय चक्र उल्टा घूम जाता समेट लेती बांहों में,छुपा लेती अंकों मे चट्टान बन जाती तेरी दिव्यता के सफर में श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 24/6/23