Posts

Showing posts from August, 2019

क्यूं याद आते हो

"क्यूं याद आते हो" क्यूं इतना याद आते हो तुम, क्या तुम भी इतना ही याद करते हो, कई दिनों से इन सवालों के घेरे में थे, क्या तुम भी याद करते हो मुझे ? फिर सोचा मिलकर कर लेंगे सारी बातें, पर तुम्हारी सकुचाहट देती है अकुलाहट, क्या मिलोगे मुझसे तुम ? कई सवालों के घेरे में हैं हम आजकल, क्या तुम भी याद करते हो यूंही । क्यूं याद आते हो  इतना तुम, शायद ये मेरी चाहत है अनोखी, तुम मिले ना मिले हम याद करेंगे यूंही । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 30/8/19

बीते हुए लम्हों की कसक

"बीते हुए लम्हों की कसक" बीते हुए लम्हों की कसक आज भी है, तुम मिले नहीं इसकी कसक आज भी है, ख्वाबों में ही हो जाए मुलाकात शायद, टूटे हुए दिल में यह आस आज भी है । हमारे प्यार के चंद लम्हे जो यादें बन गए, उन यादों की जंजीरों का पहरा आज भी है, कभी तो याद आएगी हमारी मुलाकातें, इस याद के आसरे का कसक आज भी है, बीते हुए लम्हों की कसक आज भी है। बीते हुए लम्हों की वो खूबसूरत यादें, तुमसे हुई वो मुलाकातें याद बन गयी अब,  उन यादों की महफिलें आज भी सजती है, बीते हुए लम्हों के यादों के मयखाने में, सजदे में हम आज भी पलकें बिछाते हैं, उन लम्हों के स्वागत के आरज़ू की जुस्तजू में, बीते हुए लम्हों की कसक आज भी है। गुजरे हुए अफसानें याद आती हैं बहुत, तुम्हारी वो धीरे से मुस्काने की अदा , सखियों संग जाते तिरछी नज़रों से देखना, थोड़ा रुक कर पेप्सी की वो बोतल लेना, और पैसे देते हुए एक नज़र देख लेना, उन लम्हों की यादों का कसक आज भी है। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 23/8/19

अब ना रही तुझसे कोई से शिकवे गिले

"अब ना रही तुझसे कोई से शिकवे गिले" क्या खूब कहा है किसी ने - - - "जाने क्या सोच के लहरे साहिल से टकराती हैं, और फिर समंदर में लौट जाती हैं, समझ नहीं आता कि किनारों से बेवफाई करती हैं, या लौट कर समंदर से वफ़ा निभाती हैं।" अब ना रही तुझसे कोई शिकवे गिले अब तो तेरी बेवफ़ाई पे भी प्यार आता है, तूम मेरे ना हो सके तो क्या हुआ, मेरे दिल को तो है तेरा ही आसरा, अब तो तेरी चाहतों से भी इश्क़ होता है, तुम मेरे ना हुए,और तेरी चाहते तेरी ना हुई । अब ना रही तुझसे कोई शिकवे गिले, जिंदगी से ज्यादा चाहा है तुम्हे, पर तुम तो थे अमानत किसी और के, इसे किस्मत कहूं या वक्त की बेवफ़ाई, तुम मेरे होते हुए भी ना थे मेरे । अब ना रही तुझसे कोई से शिकवे गिले, क्यूंकि तेरी ख्वाबों की मंजिलें हैं कहीं, और हम निशा ढूंढ़ते हैं कहीं, अपने दर्द को तो तुम सुनाते रहे, हमारी तन्हाइयों को भी झुठलाते रहे, हम दर्द को मुस्कराहट में छुपाते रहे । अब ना रही तुझसे कोई से शिकवे गिले, इंतज़ार की घड़ियां भी अजीब होती है, समय कटता नहीं, बेचैनी छुपती नहीं, तुम संवर रहे हो अपनी मंजिल क

धुंधली पड़ी,उजली यादों का कारवां

"धुंधली पड़ी,उजली यादों का कारवां" आज नज़रों से गुजरी एक तस्वीर सुनहरी, कुछ धुंधली पड़ी,उजली यादों का कारवां, और कुछ समय की परतों में दबा सवेरा, यादें दर यादें का खुलता रहा फ़लसफ़ा । कहकहों से खुशगवार होती थी वो यादें, ना समय था प्रहरी, ना मंजिलों की बंदिशें, बस दोस्तों के खुशी में मिलती थी मंजिलें, समय ने करवट बदली, बदली खुशियां, बदले आशियां, बदले मंजिलों का दास्तां, बदले धुंधली पड़ी उजली यादों का कारवां। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 22/8/19

बच्चे बिन

Image
"बच्चे बिन" हमारी बगिया है यही , तुम ऊर्जा के शक्ति पुंज हो मेरे, तुम बच्चे ही मेरी दुनिया हो, बात-बात में तुनकमिजाजी, तुम्हारी वो प्यार भरी शरारतें, और मै रूठ जाती तो तुम्हारा मनाना, यही तो है मेरी प्यारी ज़िन्दगी, अगर तुम न होते तो कैसी होती ज़िन्दगी, घर में होती वीरानी और सन्नाटा, शायद मैं न जी पाती तुमलोग बिन। .....श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 16/3/19

विश्व आदिवासी महोत्सव

"विश्व आदिवासी महोत्सव" "आदिवासी" शब्द दो शब्दों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिल कर बना है। इसका अर्थ है जो आदि काल से वास कर रहा हो अर्थात मूल निवासी हो। भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा 11 करोड से ज्यादा आबादी आदिवासियों का है । पुरातन संस्कृत ग्रंथो में आदिवासियों को अत्विका और वनवासी भी कहा गया है। भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची में आदिवासियों के लिए अनुसूचित जनजातियों शब्द का उपयोग किया गया है।        भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में संथाल, गोंडाए, मुंडा, बोडोए भील खासी, सहरिया, गरासिया, मीणा, उरांव, बिरहोर आदि हैं। आदिवासियों का अपना धर्म है। ये प्रकृति और जंगल पहाड़ नदियों एवं सूर्य की आराधना करते हैं ।इनके अपने पारंपरिक परिधान होते हैं ,जो ज्‍यादातर प्रकृति से जुडे होते हैं। भारत में आदिवासी मुख्यरूप से उड़ीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल मे अल्पसंख्यक है ,जबकि भारतीय पूर्वोत्तर राज्यों में यह बहुसंख्यक हैं ।जैसे मिजोरम मेँ ये बहुसंख्यक़ है ।          अब बात करते हैं विश्व आदिवासी म

जिन्दगी भी किस मोड़ पे है लाई

जिन्दगी भी किस मोड़ पे है लाई जिन्दगी भी किस मोड़ पे है लाई , चारों ओर बस छलावे ही छलावे हैं, अपनों के चेहरे में बस अजनबी ही हैं, ढूंढ़ते हैं अनजाने से अपनों में अपना कोई। जिन्दगी भी किस मोड़ पे है लाई, देखूं तो लगता है सब है मेरे सतरंगी सपने, पास जाऊं तो अजनबी बन जाते हैं सब क्यूंकि सपना तो कभी होता नहीं अपना। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 11/6/19