तिरंगा भी रो पड़ा
तिरंगा भी रो पड़ा इतिहास भी धूमिल हो गया तिरंगा भी रो पड़ा जय जवान,जय किसान का नारा भी लज्जित सा मुंह छुपाए उपद्रवियों के शोर में औंधे मुंह लाल किले के प्राचीरों से जवानों के साथ गिर गिर कर इस ज़लज़ले से लहूलुहान हो गया किसानों के हाथों में कब हल बरछी बन गया वृषभ को हांकने वाले हाथ ट्रैक्टर से तोड़-फोड़ करने लगे जुआठों से बीजों को ढंकने वाले घोड़े पर चढ़ तांडव मचाने लगे चाबुकों को प्यार से चलाने वाले 'अन्नदाता' के भेष में अब उपद्रवी नंगी तलवारें चलाने लगे ये देख तिरंगा भी रो पड़ा 'अन्नदाता' कब यमराज बन मौत बरसाने लगे जो किसान थे हमारे देश के गौरव अब भारत माता की इज्जत धूमिल कर गए गणतंत्र के इस पावन पर्व पे पूरी दुनिया मे अपनी माता को शर्मशार कर दिए फ़टी इज्जत की झीनी ओढ़नी में भारत माता मुंह छुपाए रो रही जार-जार ये देख तिरंगा भी रो पड़ा जिस तिरंगे की शान में कितने शहीद बलिदान हुए आज उसी तिरंगे को उतार कर खालिस्तान के झंडे को फहराने लगे भारत की पवित्र भूमि कभी फक्र करती थी अपने सपूतों के खून से सींचे आज़ादी को आज आज़ादी के नाम पर ये तांडव से भारत की पवित्र धरती लहूलुहान कराह