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Showing posts from June, 2021

मां भारती की पुकार

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 #मां भारती की पुकार# हम मना रहे हिन्दू स्वराज्य दिवस और बंगाल की बेटियां अस्मत लुटा रही सभी के चेहरे झेंपे से,दबे ज़बान में चिल्ला रहे हमने की मदद,हमने की मदद ज़रा उन हिन्दू बेटियों से पूछो  उनको किस बात की मिली सज़ा बस इतना सा ही तो ख्वाब देखा था  उनके परिवार ने बंगाल में  वहां भी हो सुराज्य स्थापित हर हिन्दू के घर खुशियों की दीप जले ममता सुरसा राक्षसी का हो अब पतन। बड़े अभिमान से गरजे थे अमित और मोदी नड्डा ने दिलाया था विस्वास,बड़े स्नेह से जिनके सर पे हाथ रखा था और हाथों में थमाया था हिंदुत्व का झंडा सबसे पहले वो घर लूटा लूटी अस्मत बीच बाजार में। घर छोड़ सर छुपाए डरे सहमे से हमारे हिन्दू भाई न्याय के आसरे टकटकी हैं लगाए  बाट जोह रहे फिर से भगत-बोस की क्योंकि न्याय छुपा बैठा है लोकतंत्र के भेष में राजनीति की उजली टोपी में  बहरे हुए राजनेता,बहरी हुई न्यायपालिका सबने सिर्फ हमदर्दी के नाम पे  है अपनी राजनीति चमकाई। धरातल पुकार रही,ये शहीदों क्यों छोड़ गए तुम इन स्वार्थलोलुप भेड़ियों के हाथों में अपनी मां को जिसकी अस्मत नोच रहे भेड़िये अराजकता फैला उस हिम्मत को पुकार रही मां भारती जिसने किये थे

यादों की महफ़िल

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 #यादों की महफ़िल# रात के नीरव में यादों की महफ़िल सजती हैं इन खामोशियों के जंगल मे तेरी हंसी गूंजती हैं मन उदास है मेरा,ये बीते लम्हों जरा बहला दो महबूब मेरे अब किसी की ज़िंदगी बन गए हैं जरा ये हवा उसे छू कर आ,और मुझे सराबोर कर बेवफ़ा कैसे कहूं ,वक़्त ने जुदा किया हमको बेकरार सिर्फ मैं ही नही,तुम भी बेचैन होते थे गवाह है वो बीते लम्हें,जो गुजारे साथ हमने अफसोस है,प्यार का इज़हार ना कर सके हम फिर भी शिकायत नही रब से,क्योंकि  महबूब मेरा खुश है,अपने नए जहां में ये अलग बात है कि हम खामोश तड़पते हैं  उनकी यादों की बरात सजा कर तन्हाइयों में श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 17/6/21