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मेरा बचपन दे देना मां

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 #मेरा बचपन दे देना मां# मां क्या मै तुझ जैसी बन पाई हूँ वो सहनशीलता,वो निश्चल प्यार क्या मै भी सब को दे पाई हूँ। सोचती हूँ,जब तेरे सीने से लग कर धड़कने जानी-पहचानी सी लगती हैं वक़्त बीते कितने तुझसे मिले पर तेरे गोद का वो स्पर्श  आज भी है बचपन जैसे  फिर से मेरा बचपन दे देना मां। तेरे कंधे पे सर रख अपना वजूद तलाशती हूँ कहीं तुम भूल तो नही गयी,नए खिलौनों में कभी मै भी थी गोद मे मखमली कपड़े में लिपटी रोना-मनाना,जिद में लिपटी गुड़िया तेरी मेरे लिए कई रातों को जगी थी तुम,बिन अलसाए चंदा मामा की लोरी सुनाते,धीरे से थपथपाती। उंगली पकड़ चलना सिखाया तुमने थोड़ा हिम्मत बंधाते,छोड़ा होगा उंगली मेरा पहली बार ओम लिखवा,क्या-क्या सपने सजाए जब भी महफ़िलें जमती सखी-सहेलियों की मेरी ही तारीफों के पुल बांधते न थकती थी तुम। फिर जिम्मेवारियों के सागर में छोड़ दिया तुमने विश्वास,साहस,प्रेम,करुणा का पतवार दे अकेले लड़ रही मै ज़िन्दगी की हर लड़ाई अब पहले जो थी छुई-मुई,अब हिम्मत दिखाती हर मोड़ पे बढ़ चली,नई झंझावतों से लड़ती पर दिल अब भी बच्चा है माँ। जब मिलूं तो आँचल में छुपा,बड़े ही लाड़ से अपने आँचल के खूंट से पोछ देना चेहर