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Showing posts from March, 2020

एकता का शंखनाद

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एकता का शंखनाद" आओ हम सब मिल लें संकल्प, "कोरोना हारेगा,देश जीतेगा" मंत्र का , आओ मिल करें हम सभी आगाज़, एकता का दें मिशाल मिल हम सभी। करतल ध्वनि से करो अभिनन्दन , उन डॉक्टरों का,और उनके सहयोगियों का, घंटियों से करो अभिनन्दन , कोरोना की सफाई में लगे सफाईकर्मियों का, शंखों से करो अभिनन्दन , उन पुलिसकर्मियों का जो मुस्तैद है ड्यूटियों पे, तालियों से करो अभिनंदन, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री मोदी का। हमारे प्रधांसेवक ने फूंका मंत्र, किया आध्यात्मिक पुनर्जागरण, दिखा अद्भुत अविस्मरणीय नजारा, भेद - भाव भुला सभी हुए एकजुट । दिखा अद्भुत,अकल्पनीय नज़ारे का आगाज़, इन तालियों- थालियों की गड़गड़ाहट में, दूर खड़ी मुस्करा रही थी मां भारती, हो रहा था हिंदुस्तान में एकता का शंखनाद। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 22/3/2020

जिंदगी नहीं आसां

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जिंदगी नहीं आसां" जिंदगी इतनी आसां नहीं होती... हर कदम पर कांटे बिछे हैं.... फुल बनकर निकल जाना है... हर जगह कीचड़ है, पर कमल बन निकलना है... हर रास्ते पर भेड़िये हैं..नजरें बचा कर निकल जाना है... श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज

हसरतें

"हसरतें" ये जिंदगी तुझसे बहुत ही हसरतें पाल ली थी मैंने, पर हसरतें तो एक ख्वाब है, ये बड़ी देर से जाना, ख्वाब टूटा तो रूबरू हुए हकीकत के जमीन से, हकीकत के जमीन पे मुस्कराई हमारी बेबस हसरतें, मेरी खामोशियों में, बेचैनी बन मुस्कराई हसरतें, मेरी बेताबियों को देख अक्सर तन्हाइयों में मुस्कराई हसरतें, पर हसरतें भी कहां हार मानती है अपनी नाकामियों पे, वो तो बिना रुके - थके बस संवरती रही हैं हसरतें, ख़ामोश पलकों में आंसू बन ढलकती रही हैं हसरतें, ख्वाबों का साथ छूटा,तो आशायों का दामन थामा, क्यूंकि ख्वाब है तो हैं हसरतें,जिंदगी है तो हैं हसरतें । श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 27/1/2020

हंसते मुस्कराते पल

*हंसते मुस्कराते पल* हंसते मुस्कराते कुछ पल हंसते मुस्कराते कुछ अपने यूंही चले आए थे कुछ अपने जो भीड़ में थे कहीं गुम कब से आज यूं ही भीड़ से निकल आए थे अपने । पल का मिलना जैसे वर्षों का था बिछुड़न यूं आत्मीयता से मिले थे कुछ अपने जैसे वो समय के मोहताज नहीं थे समय इंतज़ार कर रहा था इस पल का। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 7/2/2020

कवि हो कविता लिखती हो

क्या खूब कहा किसी ने आज मुझसे, कवि हो कविता लिखती हो, पर श्रोता समझते हैं की तुम क्या लिखती हो, मेरी कविता तो एक खुली किताब है, जो जैसे समझे वैसा हिसाब है, मैंने तो बस शब्दों को पिरोना सीखा है🙏। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज

रंगीला त्योहार होली

"रंगीला त्योहार होली" खुशियों का रंगीला त्योहार है होली, रंग बिरंगी रंगीली त्योहार है ये होली, आज फिर सजी है रंगों कि महफ़िल, लाल, गुलाबी,नीले, पीले, हरे बड़े गहरे, आओ एक दूजे को आज रंग लगाए, एक दूजे की खुशियों को संग लाएं, खुशियों का रंगीला त्योहार है ये होली । रंगों के फुहार से भीग रहा तन मन, बच्चों के अठखेलियों से गूंज रहा आंगन, पकवानों की मिठास खींच रहा मन, होली की मदमस्त धुन पे थिरक रहा हर मन, खुशियों का रंगीला त्योहार है ये होली, रंग बिरंगी रंगीली त्योहार है ये होली । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 10/3/2020

बचपन की होली

"बचपन की होली" देख ये तस्वीर मन में उमड़ी वो होली, यादें हो गई ताज़ा बचपन की होली की, कितनी सिद्दत से इंतज़ार रहती थी हमें , रंग - बिरंगी रंगों से सजी इस त्योहार की, और गर्म - गर्म मां के हाथों के मालपूए की। फागुन आते तैयारी शुरू हो जाती थी हमारी, वो पीतल की छोटी सी बाल्टी हमारी, और पीतल की वो लंबी सी पिचकारी, कितने ही रंगों के भीगे पुडिए रहते थे हम दबाए, जैसे किसी खजाने की हो थाती हमारी, टोली में छुप - छुप करते थे हम इंतज़ार, बड़ों को रंगों से भिगो खुशियों से झूम जाते थे हम, जैसे मिल गई हो खजाना सारी खुशियों की। ना था किसी से कोई बैर, ना था किसी से द्वेष, बस रहता था एक ही जुनून हमारा, आज कोई भी ना छूटे हमारे इस होली के रंगों से, लाल, गुलाबी और हरे गहरे बड़े, पीले से ना था नाता, वो तो बस चेहरे पे मलने के काम आता । फिर शुरू होती हमारी रंगों से लड़ाई, उसे छुड़ाने को हम सबमें लगती थी होड़, क्यूंकि शाम को अबीर भी होता था खेलना, अबीर खेल थक के सो जाते थे हम बेसुध, आंखो में इन रंगीली यादों को संजोए, कितनी अनोखी थी वो बचपन की हमारी होली। श्रीमती मुक्ता

सुकून की तलाश में

"सुकून की तलाश में" जिंदगी में सुकून की तलाश में, हम कहां से कहां आ गए, बचपन बीता, दोस्त छूटे, रिश्तों के मर्यादाओं के मायने बदले, खुशियों के रंग बदले, जिंदगी के ढंग बदले, लोगों की नज़रों के पैमाने बदले। हम बदले, सुकून की तलाश में , अब तो बस ये शब्द ही सहारा है, भावनाओं को कलमबद्ध कर लेती हूं, खुशियों को जी लेती हूं जी भर के, गमों को से इश्क़ कर लेती हूं, क्यूंकि कागज पे शब्दों को पिरो लेती हूं । श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 7/3/2020

जिंदगी चल रही थी यूं ही

"जिंदगी चल रही थी यूं ही" जिंदगी चल रही थी यूं ही, दौड़ती, भागती, जिद्दी सी, हंसती, मुस्कराती, इठलाती सी, ठिठके से कुछ पल भी थे, कुछ पल थे उदासी के भी, आए थे यूं ही अनमने मेहमान से । जिंदगी चल रही थी यूं ही, ठोकरों का कारवां था रास्ते में, मंजिल पे जाना भी था, थोड़ी दूर चलते संभलते से, पर संभलने से पहले ही लग जाती थीं ठोकरें, अभी सबक सीखा ही था ये जिंदगी, कि नया सबक सीखाने को तैयार था जमाना । जिंदगी चल रही थी यूं ही, मंजिलों पे थी नज़रें हमारी, दृढ़ निश्चय था हमारा अडिग, सारी मुश्किलें लग रही थी बौनी, क्यूंकि मंजिल था हमारा हिमालय सा। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 3/3/2020

मां का प्यार

"मां तेरे प्यार को क्या नाम दूं" मायके की दहलीज है सबसे निराली, मां की गोद है जन्नतों से भी प्यारी, उन आंखो के प्यार को क्या नाम दूं, मां के हाथों के नरम स्पर्श को क्या नाम दूं, जो धीमे से फिसलते हुए,आंक लेती हैं सब, मेरे हर दर्द और खुशी को भांप लेती हैं, मां के उस अनोखे प्यार को क्या नाम दूं । मां आज भी जब सीने से तुम हो लगाती, एक अनोखा सुकून मिलता है दिल को, उस दिल के अनोखे सुकून को क्या नाम दूं, नज़रे हैं तेरी, या है एक अनोखा पैमाना, मेरे चेहरे के हर भावों को पढ़ लेती हो, बोलने से पहले ही सब हाज़िर कर देती हो, मेरी हर खुशियां जमाने से चुरा लाती हो, तेरी उन आंखों के पैमाने को क्या नाम दूं। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 20/1/2020

महाराणा प्रताप

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"वीर महाराणा प्रताप" ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को लियो जन्म एक वीर सपूत, आशीष लुटाई थी माता ज्यवंता कुंवर ने कुंभलगढ़ में, हर्षित हुए महाराणा उदय प्रताप, हर्षित हुआ उदयपुर मेवाड़ में, सिसोदिया राजवंश, हुई थी हर्षित धरा, देवों ने बजाया था दूदुंभी, इतिहास ने भी माना था लोहा जिसका , दृढ़ प्रण और साहस का, येसा धनी था वह वीर, निरंतर वर्षों तक किये थे दांत खट्टे जिसने मुगलों के, जिसने अपनी शक्ति और बुद्धि से दुश्मनी कि नींद उड़ाई थी, उस वीर की मृत्यु पे दुश्मनों ने भी आंसू बहाए थे, जिनकी बहादुरी के किस्से आज भी देशभक्ति के जोश जगाते हैं, येसे थे हमारे देश के वीर सपूत महाराणा प्रताप । गद्दारों के षडयंत्रों ने महलों से जंगलों में पहुंचाया था, घास की रोटी ने भी, प्रताप के इरादों को ना डिगाया था, अपनों ने जब छल्ला, भीलों ने महाराणा का साथ निभाया था, युद्ध के लिए सैनिकों के लिए भामाशाह ने भी खोला था तिजोरी, महाराणा का साथ निभा भामाशाह इतिहास में बना अमर, हल्दी घाटी युद्ध में भाई बना विभीषण, झाला ने साथ निभाया था, मुगल दूर से महाराणा के मुकुट देख लगा रहे थे निशाना, सरदा

शिक्षक दिवस

"शिक्षक दिवस" रोज सुबह मिलते है इनसे, क्या हमको करना है, ये बतलाते है । ले के तस्वीरें इन्सानों की, सही गलत का भेद हमें, ये बतलाते है । कभी ड़ांट तो कभी प्यार से, कितना कुछ हमको, ये समझाते है । है भविष्य देश का जिन में, उनका सबका भविष्य, ये बनाते है । है रगं कई इस जीवन में, रगों की दुनिया से पहचान, ये करवाते है । खो ना जाये भीड़ में कहीं हम, हम को हम से ही, ये मिलवाते है । हार हार के फिर लड़ना ही जीत है सच्ची, ऐसा एहसास, ये करवाते है । कोशिश करते रहना हर पल, जीवन का अर्थ हमें, ये बतलाते है । देते है नेक मज़िल भी हमें, राह भी बेहत्तर हमे, ये दिखलाते है । देते है ज्ञान जीवन का, काम यही सब है इनका, ये शिक्षक कहलाते है । Mrs mukta singh Rankaraaj 5/9/17

क्यूं याद आते हो

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"क्यूं याद आते हो" क्यूं इतना याद आते हो तुम, क्या तुम भी इतना ही याद करते हो, कई दिनों से इन सवालों के घेरे में थे, क्या तुम भी याद करते हो मुझे ? फिर सोचा मिलकर कर लेंगे सारी बातें, पर तुम्हारी सकुचाहट देती है अकुलाहट, क्या मिलोगे मुझसे तुम ? कई सवालों के घेरे में हैं हम आजकल, क्या तुम भी याद करते हो यूंही । क्यूं याद आते हो  इतना तुम, शायद ये मेरी चाहत है अनोखी, तुम मिले ना मिले हम याद करेंगे यूंही । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 30/8/19

यादों का कारवां

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"धुंधली पड़ी,उजली यादों का कारवां" आज नज़रों से गुजरी एक तस्वीर सुनहरी, कुछ धुंधली पड़ी,उजली यादों का कारवां, और कुछ समय की परतों में दबा सवेरा, यादें दर यादें का खुलता रहा फ़लसफ़ा । कहकहों से खुशगवार होती थी वो यादें, ना समय था प्रहरी, ना मंजिलों की बंदिशें, बस दोस्तों के खुशी में मिलती थी मंजिलें, समय ने करवट बदली, बदली खुशियां, बदले आशियां, बदले मंजिलों का दास्तां, बदले धुंधली पड़ी उजली यादों का कारवां। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 22/8/19

रक्षा बंधन

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"रक्षा बंधन" रिश्ते है कई इस संसार में , पर ये रिश्ता कुछ खाश है, कच्चे धागों में लिपटा विश्वास है, टूटे ना ये विश्वास का धागा, कुछ तुम निभाना, कुछ हम निभाएंगे, वचन में बंधे तुम सारी उम्र मेरी रक्षा करना, मै वचन में बंधी ले लूंगी तेरी सारी बलैयां । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 15/8/19

स्वतंत्रता दिवस

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"स्वतंत्रता दिवस" स्वतंत्रता दिवस के इस अवसर पे, कश्मीर में भी हुआ है नया सवेरा, जहां आतंकवाद के खौफ से , थर्राती थी धरती और आसमां, वहां गूंजेगी नए दौर की शहनाई । दुनिया में कुछ भी नहीं मुश्किल, मन में हो अगर पूरा विश्वास, देश के लिए मिटने का हो भाव, और स्वतंत्रता हो जान से प्यारी । आजाद भारत के वासी हैं हम, आ उन शहीदों को करें सलाम, जिन्होंने देश के लिए दिया बलिदान आ आज इस दिवस पे करें संकल्प ये, अखंड भारत का हो स्वप्न हमारा, जहां धर्म और प्रेम में हो समरूपता । वन्दे मातरम्, जय हिन्द,जय भारत 🙏 श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 15/8/19

जिन्दगी किस मोड़ पे लाई है

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"जिन्दगी किस मोड़ पे लाई है " जिन्दगी भी किस मोड़ पे लाई है , चारों ओर बस छलावे ही छलावे हैं, अपनों के चेहरे में बस अजनबी ही हैं, ढूंढ़ते हैं अनजाने से अपनों में अपना कोई। जिन्दगी भी किस मोड़ पे लाई है , देखूं तो लगता है सब है मेरे सतरंगी सपने, पास जाऊं तो अजनबी बन जाते हैं सब क्यूंकि सपना तो कभी होता नहीं अपना। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 11/6/19

चलते चलते कहां आ गए

"चलते कहां आ गए" चलते कहां आ गए हम, जो दिल में थे दूर हो गए, जो अजनबी थे हमसफ़र हो गए, आज भी है उनका इंतज़ार आंखो में, जो कभी दिल के करीब थे, आज भी यादें ताज़ा हो जाती है , जब सुन लूं किसी से नाम उनका, पर वो तो अजनबी हो गए । चलते चलते कहां आ गए हम, जो दिल में थे किसी के नूर हो गए, अब अजनबी हमसफ़र हमख्याल हो गए, दिल की गलियों में उनकी खुशबू आज भी है, यादों में तस्वीरें आज भी बोलती हैं, आंखे उठाना पलकें गिराना याद आज भी है, गुस्से की वो लाली आज भी याद है, जो ख्यालों को आज भी सुर्ख कर जाती है। चलते चलते कहां आ गए हम, जो दिल में थे आज किसी के हमनवां हो गए । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 21/7/19

झूठी उम्मीदें

"झूठी उम्मीदें" झूठी उम्मीदें, झूठी तेरी कसमें, झूठ की नीव पे खड़ा है ये ईमारत, मेरे प्यार को तुमने ना समझा, और तेरे फरेब को मै मान बैठी प्यार, क्यूं भूल जाती हूं तेरे चेहरे देख हर बात, तू कभी भी ना था मेरा प्यार । समाज ने जोड़ा है हमारा रिश्ता, दिलों में तो अभी भी कोई और है, और कैसे चाहूं तुझे क्या की कमी है, जब चाहा इकरार किया जब चाहा ठुकराया, मेरी इबादतों का ये कैसा सिला दिया । तेरे झूठे उम्मीदों का आसरा कर लेती हूं, तेरे झूठे अल्फाजों पे विश्वास कर लेती हूं, हर बार उम्मीद कर दिल तोड़ लेती हूं, थक गई मेरी मुहब्बत इम्तहान दे देकर, दुआ देती हूं तू खुश रह अपनी दुनिया में, मै खुश हूं तेरी खुशनुमा यादों के सहारे, जानती हूं वो भी झूठ पे टिका है, पर मेरे लिए तो वहीं जन्नते जहां है । श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 2/7/19

इस मां को नमन

"इस मां को नमन" 16 दिसम्बर की वो भयावह रात, याद कर सिहर जाते हैं हम, निर्भया पे क्या बीती होगी, जब दरिंदों ने नोचा होगा, आत्मा को भी किया होगा लहूलुहान, शरीर के साथ रूह भी कांपी होगी। 20 मार्च को निकला न्याय का सवेरा, भारत की बेटियों के स्वाभिमान का सवेरा, निर्भया के तड़प की इंसाफ का सवेरा, उस मां के इंतज़ार खत्म होने का सवेरा, आज निर्भया भी आसमां से मुस्कराई होगी। कभी जज नहीं आते, तो कभी वकील, कभी दुहाइयां, तो कभी माफीनामा, तारीखों पे तारीखें पड़ती रही, पर ना छूटा उस मां की न्याय का आस, तारीखें पड़ती रही दरिंदे मुस्कराते रहे, पर इस मां ने ना छोड़ी आस का दामन। इस बहादुर मां को नमन, जिसने ना ली फीस एक रुपए, इस निस्वार्थ भाव को नमन, इस न्यायपालिका को नमन।🙏 श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 20/3/2020

किस्मत भी क्या खेल दिखाती है

"किस्मत भी क्या खेल दिखाती है" किस्मत भी क्या खेल दिखाती है, सावन में पतझड़ लाती है, हर चेहरे पे है मुखौटे सजे, मुस्कराते हुए यूं खड़े हैं जैसे, चेहरे पे हंसी हाथों में हैं खंजर लिए। किस्मत भी क्या खेल दीखाती है, दिल की गहराइयों से जिसे भी चाहा हमने, वही बना जख्मे दिल का सबब, हर रिश्ता नाता, अब है बस एक दिखावा, एक चेहरे पे कई चेहरे लगाए बैठे हैं सभी। किस्मत भी क्या खेल दिखाती है। श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 13/3/2020

बहुत दिनों से

*बहुत दिनों से* बहुत दिनों से कुछ छूट सा गया था, जैसे कोई अपना रूठ गया था, दिलों में थी मायूसी बिखरी सी, लबों पे हंसी और आंखों में नमी सी । बहुत दिनों से रूठा था अहसास मेरा जैसे कोई अपना, हो गया हो बेगाना, आस पास सजी थी रिश्तों की महफिलें और बेगाने से थे हम, रिश्तों कि महफिलों में। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 16/3/2020