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Showing posts from November, 2019

फिर से हम बच्चा जाए

"फिर से हम बच्चा जाए" चलो आज फिर से हम बच्चा जाए कटोरी भर के दूध पाउडर खाएं चॉकलेट दिखा के दोस्तों को लालचाएं आज फिर से डंडे चोट से गीली उड़ाएं । चलो आज फिर से बच्चा बन जाएं पिट्टो की गोटी को हवा में उछालें पतंग की डोरी को फिर से ड्ढिल दे दें कबड्डी में अपनी पैठ बनाएं । चलो आज फिर से बच्चा बन जाएं दोस्तों में शहनसां बन जाएं वो कागज़ की कश्ती फिर से चलाएं बारिश की पानी में ओले उठाएं । चलो आज फिर से बच्चा बन जाएं वो इमली की तीखी चटपटी यादें बनाएं आम की टिकोली का घुमाउल बनाएं डोला - पत्ता में सबको हराएं सावन में पेड़ों पर झूला लगाएं। चलो आज फिर से बच्चा बन जाएं । श्रीमती मुक्ता सिंह रंका राज 15/7/19

दरका होगा तेरी बातों से"

" दरका होगा तेरी बातों से" कितना कुछ दरका होगा तेरी बातों से, "मां तुम तो पागल हो जाती हो, लगता है जैसे जान से ही मार डालोगी", मेरे दिल के टुकड़े कैसे मै दिखाऊं तुझे, मां के दिलों में तो है बस प्यार का सागर, जमाने की नज़रों से बचाने की बेकरारी, ना है कोई ईर्ष्या, ना है कोई द्वेष । कितना कुछ दरका होगा तेरी बातों से, माना कि इक्कसवीं सदी में हैं हम, जहां है इंटरनेट का बोलबाला, ना साथियों का इंतज़ार खेलने के लिए, ना समय की है पाबंदी घर आने के लिए, क्योंकी बच्चे घर में रहते भी हैं अकेले, नेट ही है उनका परिवार और संसार । कितना कुछ दरका होगा तेरी बातों से, क्यूंकि कैसे देखूं तुझे अपनी जिंदगी खोते, वर्षों का तजुर्बा है, जमाने की नियतों का, कैसे बताऊं इस डब्बे के बाहर भी है दुनिया, इस दुनिया और उस दुनिया के कायदे है अलग, पग पग पर है जाल बिछा कांटों का, चादरें हैं फूलों की, और सेज सज़ा कांटों का। श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 12/11/19