तेरी आँखें
तेरी आँखें आज एक तस्वीर नजरों से गुजरी, जिसमे तेरी आँखे के थे कारनामे, जैसे कुछ ढूंढ रही थी मुझमें, इन सागर से गहरी तेरी आँखे , पैमाने की क्या औकात जो आंके, तेरी नैनों की गहराईयों को, जो कुछ ढूंढ रही थी मुझमें । वो गुजरे लम्हों की तस्वीर थी ये, जब हम-तुम डूबे थे एक दूजे की आँखों में, पास थे सारे रिश्ते - नाते , पर हम बेखबर से थे एक दूजे में खोये । जब भी तुम्हारी नज़रें मिलती हैं मुझसे, न जाने कौन सा जादू कर देते हो मुझपे, सारे वजूद में सिहरन सी उठती है, और हम नजरें मिला कर खो जाते हैं, पर दूसरे ही क्षण झुक जाती हैं मेरी नजरें, ना जाने क्या ढूंढती हैं तुम्हारी आँखे मुझमें । न जाने कौन सी कशिश है तेरी आँखों में, शर्मो हया की हद पार कर जाती हूँ, तेरे जबां तो खामोश होते हैं , पर अल्फ़ाज बयां कर जाती हैं आँखे । तेरी आँखों की गहराइयों से लगता है डर, झील नहीं समंदर है ये तेरे नैन, एक बार जो देखूं इनमें डूबती ही जाती हूँ, तेरी आँखों की गहराई का न है कोई पैमाना, ना तो है इसका कोई किनारा । ...................... 📝श्रीमती मुक्ता सिंह