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Showing posts from August, 2018

तेरी आँखें

तेरी आँखें आज एक तस्वीर नजरों से गुजरी, जिसमे तेरी आँखे के थे कारनामे, जैसे कुछ ढूंढ रही थी मुझमें, इन सागर से गहरी तेरी आँखे , पैमाने की क्या औकात जो आंके, तेरी नैनों की गहराईयों को, जो कुछ ढूंढ रही थी मुझमें । वो गुजरे लम्हों की तस्वीर थी ये, जब हम-तुम डूबे थे एक दूजे की आँखों में, पास थे सारे रिश्ते - नाते , पर हम बेखबर से थे एक दूजे में खोये । जब भी तुम्हारी नज़रें मिलती हैं मुझसे, न जाने कौन सा जादू कर देते हो मुझपे, सारे वजूद में सिहरन सी उठती है, और हम नजरें मिला कर खो जाते हैं, पर दूसरे ही क्षण झुक जाती हैं मेरी नजरें, ना जाने क्या ढूंढती हैं तुम्हारी आँखे मुझमें । न जाने कौन सी कशिश है तेरी आँखों में, शर्मो हया की हद पार कर जाती हूँ, तेरे जबां तो खामोश होते हैं , पर अल्फ़ाज बयां कर जाती हैं आँखे । तेरी आँखों की गहराइयों से लगता है डर, झील नहीं समंदर है ये तेरे नैन, एक बार जो देखूं इनमें डूबती ही जाती हूँ, तेरी आँखों की गहराई का न है कोई पैमाना, ना तो है इसका कोई किनारा । ...................... 📝श्रीमती मुक्ता सिंह

फोटोग्राफी

फोटोग्राफी दिवस          कहा जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है ।और एक अच्छा फोटोग्राफर उसे ही मन जाता है जो अपने शब्दों को अपनी फोटोग्राफी में दिखा दे ।         सर्वप्रथम 1839 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने फोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। और साथ ही बताया जाता है कि ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूंढ लिया था। वहीँ 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई। और 7 जनवरी 1839 को फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो ने  फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए एक रिपोर्ट तैयार की थी।जिसमें फोटो क्लिक करने के बाद धुलना और फिर कागज़ पर उतारना ।इस पद्धति को 9 जनवरी 1939 में फ्रेंच एकेडमी ऑफ साइंस ने मान्‍यता दी। और इस पद्धति को डगुरियोटाइप कहा जाता था।जिसे बाद में फ्रांस सरकार ने खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त 1939 को फ्री घोषित किया । इसीलिए 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है।            उसके बाद 1839 में विलियम फॉक्‍स टैलब

शिकवे और शिकायतें

शिकवे और शिकायतें* जिंदगी से क्या शिकवे और शिकायतें, सभी तो हैं बस अपने ही अपने, इन अपनों की भीड़ में तू है मेरी जिंदगी, सांसे भी चलती हैं तो तेरे नाम लेकर, दिल भी धड़कता है तो बस तेरे लिए। तुझसे क्या करूँ शिकवे और शिकायते, अपनों के लिए ही तो है तेरे सारे आयते, बस मै ही नहीं हूँ उन अपनों की भीड़ में, ये जिंदगी बस इतनी सी है शिकायतें । मेरा वज़ूद ही टिका है तेरे नाम पे, पर तुम तो गुम हो अपनी ही दुनिया में, रास्तों में खड़ी हूँ तेरे इंतज्जार में, पर सुना है आजकल तुम हवाओँ की सैर करते हो । जिंदगी से क्या शिकवे और शिकायतें , मेरी तो दुआ भी तुम और मन्नते भी तुम ही हो, ईश्वर की दी हुई एक खूबसूरत ख्वाब भी तुम हो, हक्कीकत भी तुम हो, और सपना भी तुम ही हो, मेरे होने का अहशास भी तुम ही हो । ................🙏श्रीमती मुक्ता सिंह

दोस्ती है अनमोल

दोस्ती है अनमोल दोस्ती हर किसी से नहीं होती पर जब होती है, हर ख़ुशी से बड़ी होती है, जहाँ न कोई मतलब का मोल होता है , बस दोस्ती में जज़्बा अनमोल होता है । दोस्ती से बड़ी ना तो कोई नाता है, रिश्ता ये अनमोल प्यारा सा लुभाता है, दोस्ती में हर सुख-दुःख एक दूजे का होता है, स्वार्थ से पर ये एक अनमोल नाता है । हर पल में सच्चे दोस्त की याद आती है, उसकी नसीहत और खिलखिलाहट याद आती है । एकदूजे के चेहरे के हरेक भाव को समझ जाना, बिन कहे ही एकदूजे की बातों को समझ जाना । आज भी उन गलियों से जब गुजरती हूँ, तुम्हारी दोस्ती के हरेक रंग से खुद को भिगोती हूँ, वो नसीहत वो खिलखिलाहट, वो धीरे से दिल की बातें शेयर करना, वो फुचके की चटपटे स्वाद, और एक अलग से सुखा चटपटा पापड़ी की जिद, वो ठंढ में ठेलेवाले चाय की चुस्की, और शाम के गर्म समोसे और पापड़ी की चाट, आज भी गुजरती हूँ जब उधर से, अनायास ही पैर मुड़ जाते है उस खोमचे पे, और मन ही मन मुस्करा देती हूँ तुम्हे याद कर, पर वो स्वाद नहीं आता, जिसकी तारीफें करते थे हम । समय बदला रिश्ते बदले पर न बदली दोस्ती हमारी, आज भी रिश्ता दिल से निभाते