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Showing posts from June, 2019

दोस्ती को ना तौल

*"दोस्ती को ना तौल"* रिश्ते के तराजू में दोस्ती को ना तौल ये दोस्त, मै हनुमान नहीं जो दिल चीर के तेरा नाम दिखा दूं, हर रिश्ते ने गम दिया है दोस्ती ने भी नाता तोड़ लिया है, मै ना सीख पाई दुनियादारी की रिवायतें, बस दिल की सुनी और चल पड़ी कांटो में फूल ढूंढने, जख्मों से पैर छलनी है पर मंजिलों की आस बनी है, बस अब बस टूट गए होसले, ना रही अब किसी से शिकवा ना शिकायतें, सब खुश रहें यही है दुआ बस अब रब से, क्या खूब कहा है किसी ने - "किसी के बिना रुकती नहीं जिंदगी , और अपनों के बिना कटती नहीं जिंदगी।" श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 22/6/19

बारिश की बूंदें

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   Rewrite     *बारिश की बूंदे* रात की गहरी होती खामोशियां, जैसे स्याह सी निस्तब्धता बढ़ा रही हो, बारिश की बूंदे भी धीरे से धरती को आगोश में ले रही हैं। इन बूंदों की भी है अजीब साजिशें, प्रेमी दिलों मे बेचैनीयां बढ़ा रही हो जैसे, इस सन्नाटे में तुम्हारी यादों का कारवां, ठंडी हवा सी तन मन को सिहरा रही हैं, काश कि तुम इस रात में होते यहां, मै तेरी बांहों में खुद को भूल जाती, तेरे प्यार के सुरक्षा कवच में खो जाती, उस एहसास की शिद्दत से याद आ रही है। इन बूंदों की भी है अजीब साजिशें, अपनी बूंदों से प्रेमियों को भिगोती है इस कदर, वो तड़प जाते हैं रेगिस्तान में मृगमारिचिका सी, मेरी धड़कनो पे तो तेरे नाम का यूं पहरा है, कि मेरी सांसों में भी तेरी खुशबू बसती है, फिर सोचती हूं क्या तुम भी तड़पते हो मेरी तरह, क्या ये बूंदे तेरे दिल में भी टीस भर जाती हैं, पर कहा गया है प्यार तो निस्वार्थ होता है। बारिश की बूंदों और यादों का है गहरा नाता, वो धीरे से बरसती हैं और प्रेमी तड़पते हैं, तुम खुश रहो सदा ये दुआ है मेरी, तुम याद करो ना करो नहीं हैं बंदिशें, मैंने तो मांग लिया

अनोखा है ये दिलों का बंधन

*"अनोखा है ये दिलों का बंधन"* अनोखा है ये दिलों का बंधन, सात फेरे,काले मोती और सिंदूर , इनसे बंधा है ये अनोखा बंधन, कुछ मंत्रोच्चार ने दिलों को जोड़े, पाणिग्रहण की रस्म ने कराया था एहसास, तेरे पहले स्पर्श का एहसास था अनोखा, सात फेरे सात वचन में बंध गए हम । कैसा है ये अनोखा अनमोल बंधन, सारी खुशियां मिल गई तुझको पाकर, जिंदगी संवर गई तेरे पहलू में आकर, तेरे बिन अब एक लम्हा भी गुजरता नहीं, मेरे धड़कनों पे भी अब राज तुम्हारा है। कैसा है ये अनोखा दिलों का बंधन, गृहस्ती हमारी चल रही थी यूं ही, रिश्ते बढ़े जिम्मेवारियों बढ़ी, पर प्यार ना हुआ हमारा कम, पर जिम्मेवारियों ने लिया ये कैसा पलटन, ना चाहते हुए भी हम दूर हो रहे हैं, आहिस्ता आहिस्ता बढ़ रही मजबूरियां, कैसे रहेंगे हम तेरे बिन हमदम, कहीं निकल ना जाए प्राण हमारे, तुम बिन वो हमसफ़र । कैसा है ये अनोखा दिलों का बंधन, अजीब है ये दिलों का भी रिश्ता, अब तुम और मै ना रहे, होकर हम, अब तुम ही मेरी जिंदगी हो, धड़कनों की आवाज भी तुम ही हो, कैसा है अनोखा हमारा बंधन । श्रीमती मुक्ता सिंह रंकाराज 29/6/19