कब आओगी बेटा
"मेरी प्रिंसेस" क्या लिखूं ये मेरे धड़कनों की मंजिल शब्द ही नही मिलते,भावाभिव्यक्ति को जो तू थी तो फिजायें भी गुनगुनाती थी हरक्षण बहारों की झोको सी थी तेरी खनकती हंसी बातों की खुशबुयों से सराबोर करती थी हमारा जहां तेरे कौशल के दर्प से दमकता था हमारा आभा हर ओर बिखरी रहती थी खुशियां-ही-खुशियां मारकेश का लगा ऐसा नज़र,अब बिखरी है उदासियां राहु सच मे ग्रहण लगा गया मेरे चांद को,अंधेरा हो गया हमारा जहां अब भी लगता है,कहीं से आ गले लग जाओगी और धीरे से मेरे गालों को चुम वो अव्यक्त प्यार जताओगी कान तरसते हैं तेरी आवाज़ सुनने को "अरे यार मम्मी सुनो ना" आंखे तेरी छवि बसाए,ढूंढती हैं तुझे टकटकी लगाए कब आओगी बेटा, अब बस बहुत हुआ आ जाओ,बहुत दिन हुए,तुझे नज़रों से ओझल हुए तेरी आस में आंखे समंदर बन तांडव करती है हरपल आस की लहरें उठतीं हैं तूफान बन प्रतिपल और निराशा के पत्थरों पे दम तोड़तीं हैं तड़प-तड़प हरपल गमों के अंधेरों में अब धुंधला-धुंधला सा दिखता है जहाँ श्रीमती मुक्ता सिंह रंकराज 26/9/21