नींद और ख्वाब के दरमियाँ

 *नींद और ख्वाब के दरमियाँ



नींद और ख्वाब के दरमियाँ

बस तेरे-मेरे अफ़साने हैं

याद इतने आते हो कि,तारे गिनते

कब सहर हुई पता न चला

और ख्वाबों में जो तुम आये

रात बैरी बन सुबह में बदल गयी



नींद और ख्वाब के दरमियाँ

बस तेरे-मेरे अफ़साने हैं

इंतजार में नींद रूठी रही हम मनाते रहे,

और मेरे ख्वाबों पे तो तेरा ही हुकूमत है


नींद और ख्वाब के दरमियाँ

बस तेरे-मेरे अफ़साने हैं

चाँद भी लुकछुप अठखेली करता

नज़र रखता है हमारी वेचैनियों पे

नींद तो सौतन बन ही बैठी है

ख्वाब भी आंखे दिखाता है।



श्रीमती मुक्ता सिंह

रंकाराज

11/6/23

 



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